ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः
ॐ जमदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम:
प्रचोदयात
कल यानी शुक्रवार 14 मई को वैशाख शुक्ल तृतीय अर्थात अक्षय
तृतीया का अक्षय पर्व है, जिसे भगवान् विष्णु के छठे अवतार
परशुराम के जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है | तृतीया
तिथि का आरम्भ प्रातः पाँच बजकर चालीस मिनट के लगभग होगा और पन्द्रह मई को प्रातः
आठ बजे तक तृतीया तिथि रहेगी | तिथि के आरम्भ में गर करण और धृति योग है तथा
सूर्य, शुक्र और शनि अपनी अपनी राशियों में गोचर कर रहे हैं | साथ ही चौदह मई को
ही रात्रि में ग्यारह बजकर बीस मिनट के लगभग भगवान भास्कर भी वृषभ राशि में
प्रस्थान कर जाएँगे | तो, सर्वप्रथम सभी को अक्षय तृतीया की
हार्दिक शुभकामनाएँ...
यों तो हर माह की दोनों ही पक्षों की तृतीया
जया तिथि होने के कारण शुभ मानी जाती है, किन्तु वैशाख शुक्ल तृतीया स्वयंसिद्ध तिथि मानी जाती
है | पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य
किये जाते हैं उनका अक्षत अर्थात कभी न समाप्त होने वाला शुभ फल प्राप्त होता है | भविष्य पुराण तथा अन्य पुराणों की मान्यता है कि भारतीय काल गणना के
सिद्धान्त से अक्षय तृतीया के दिन ही सतयुग और त्रेतायुग का आरम्भ हुआ था जिसके
कारण इस तिथि को युगादि तिथि – युग के आरम्भ की तिथि – माना जाता है |
साथ
ही पद्मपुराण के अनुसार यह तिथि मध्याह्न के आरम्भ से लेकर प्रदोष काल तक अत्यन्त
शुभ मानी जाती है | इसका कारण भी सम्भवतः
यह रहा होगा कि पुराणों के अनुसार भगवान् परशुराम का जन्म प्रदोष काल में हुआ था |
परशुराम के अतिरिक्त भगवान् विष्णु ने नर-नारायण और हयग्रीव के रूप
में अवतार भी इसी दिन लिया था | ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय
कुमार का अवतार भी इसी दिन माना जाता है | पवित्र नदी गंगा
का धरती पर अवतरण भी इसी दिन माना जाता है | माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने
पाण्डवों को वनवास की अवधि में अक्षत पात्र भी इसी दिन दिया था – जिसमें अन्न कभी
समाप्त नहीं होता था | माना जाता है कि महाभारत के युद्ध और द्वापर युग का समापन
भी इसी दिन हुआ था तथा महर्षि वेदव्यास ने इसी दिन महान ऐतिहासिक महाकाव्य महाभारत
की रचना आरम्भ की थी |
जैन
धर्म में भी अक्षय तृतीया का महत्त्व माना जाता है |
प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ को उनके वर्षीतप के सम्पन्न होने पर उनके पौत्र श्रेयाँस ने
इसी दिन गन्ने के रस के रूप में प्रथम आहार दिया था | श्री आदिनाथ भगवान ने सत्य व अहिंसा का प्रचार करने एवं अपने कर्म बन्धनों को
तोड़ने के लिए संसार के भौतिक एवं पारिवारिक सुखों का त्याग कर जैन वैराग्य
अंगीकार किया था | सत्य और अहिंसा के प्रचार करते करते
आदिनाथ हस्तिनापुर पहुँचे जहाँ इनके पौत्र सोमयश का शासन था | वहाँ सोमयश के पुत्र श्रेयाँस ने इन्हें पहचान लिया और शुद्ध आहार के रूप
में गन्ने का रस पिलाकर इनके व्रत का पारायण कराया | गन्ने
को इक्षु कहते हैं इसलिए इस तिथि को इक्षु तृतीया अर्थात अक्षय तृतीया कहा जाने
लगा | आज भी बहुत से जैन धर्मावलम्बी वर्षीतप की आराधना करते
हैं जो कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी से आरम्भ होकर दूसरे वर्ष वैशाख शुक्ल तृतीया
को सम्पन्न होती है और इस अवधि में प्रत्येक माह की चतुर्दशी को उपवास रखा जाता है
| इस प्रकार यह साधना लगभग तेरह मास में सम्पन्न होती है |
इस
प्रकार विभिन्न पौराणिक तथा लोक मान्यताओं के अनुसार इस तिथि को इतने सारे महत्त्वपूर्ण
कार्य सम्पन्न हुए इसीलिए सम्भवतः इस तिथि को सर्वार्थसिद्ध तिथि माना जाता है |
किसी भी शुभ कार्य के लिए अक्षय तृतीया को सबसे अधिक शुभ तिथि माना जाता है : “अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तम्, तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया | उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यै:, तत् च अक्षयं
भवति भारत सर्वमेव ||”
सांस्कृतिक दृष्टि से
इस दिन विवाह आदि माँगलिक कार्यों का आरम्भ किया जाता है | कृषक
लोग एक स्थल पर एकत्र होकर कृषि के शगुन देखते हैं साथ ही अच्छी वर्षा के लिए पूजा
पाठ आदि का आयोजन करते हैं | ऐसी भी मान्यता है इस दिन यदि
कृषि कार्य का आरम्भ किया जाए जो किसानों को समृद्धि प्राप्त होती है | इस प्रकार प्रायः पूरे देश में इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता
है | साथ ही, माना जाता है कि इस दिन जो भी कार्य किया जाए अथवा जो भी वस्तु खरीदी
जाए उसका कभी ह्रास नहीं होता | किन्तु, वास्तविकता तो यह है कि यह समस्त संसार ही क्षणभंगुर है | ऐसी स्थिति में हम यह कैसे मान सकते हैं कि किसी भौतिक और मर्त्य पदार्थ
का कभी क्षय नहीं होगा ? जो लोग धन,
सत्ता, रूप-सौन्दर्य, मान सम्मान आदि
के मद में चूर कहते सुने जाते थे “अरे हम जैसों पर किसी बीमारी से क्या फ़र्क पड़ना
है... इतना पैसा आख़िर कमाया किसलिए है...? हमारी सात पीढ़ियाँ भी आराम से बैठकर
खाएँ तो ख़त्म होने वाला नहीं... तो बीमारी अगर हो भी गई तो क्या है, अच्छे से अच्छे अस्पताल में इलाज़ करवाएँगे... पैसा किस दिन काम आएगा...?”
आज वही लाखों रूपये जेबों में लिए घूम रहे हैं लेकिन किसी को अस्पतालों में जगह
नहीं मिल रही, किसी को ऑक्सीजन नहीं मिल रही तो किसी को
प्राणरक्षक दावों का अभाव हो रहा है और इस सबके चलते अपने प्रियजनों को बचा पाने
में असफल हो रहे हैं | कोरोना ने तो सभी को यह बात सोचने पर विवश कर दिया है कि
पञ्चतत्वों से निर्मित इस शरीर का कितनी भी धन सम्पत्ति एकत्र करने का क्या
प्रयोजन...?
इसीलिए
यह सोचना वास्तव में निरर्थक है कि अक्षय तृतीया पर हम जितना स्वर्ण खरीदेंगे वह
हमारे लिए शुभ रहेगा, अथवा हम जो भी कार्य
आरम्भ करेंगे उसमें दिन दूनी रात चौगुनी तरक्क़ी होगी | जिस समय हमारे मनीषियों ने
इस प्रकार कथन किये थे उस समय का समाज तथा उस समय की आर्थिक परिस्थितियाँ भिन्न थीं
| उस समय भी अर्थ तथा भौतिक सुख सुविधाओं को महत्त्व दिया जाता था, किन्तु चारित्रिक नैतिक आदर्शों के मूल्य पर नहीं | यही कारण था कि परस्पर
सद्भाव तथा लोक कल्याण की भावना हर व्यक्ति की होती थी | इसलिए हमारे मनीषियों के
कथन का तात्पर्य सम्भवतः यही रहा होगा कि हमारे कर्म सकारात्मक तथा लोक कल्याण की
भावना से निहित हों, जिनके करने से समस्त प्राणिमात्र में
आनन्द और प्रेम की सरिता प्रवाहित होने लगे तो उस उपक्रम का कभी क्षय नहीं होता
अपितु उसके शुभ फलों में दिन प्रतिदिन वृद्धि ही होती है – और यही तो है जीवन का
वास्तविक स्वर्ण | किन्तु परवर्ती जन समुदाय ने – विशेषकर
व्यापारी वर्ग ने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए इसे भौतिक वस्तुओं – विशेष रूप से
स्वर्ण – के साथ जोड़ लिया | अभी हम देखते हैं कि अक्षय
तृतीया से कुछ दिन पूर्व से ही हमारे विद्वान् ज्योतिषी अक्षय तृतीया पर स्वर्ण
खरीदने का मुहूर्त बताने में लग जाते हैं | कोरोना के इस संकटकाल में भी – जब लगभग
हर परिवार में यह महामारी अपना स्थान बना चुकी है - हमारे विद्वज्जन अपनी इस
भूमिका का निर्वाह पूर्ण तत्परता से कर रहे हैं | लोग अपने आनन्द के लिए प्रत्येक
पर्व पर कुछ न कुछ नई वस्तु खरीदते हैं तो वे ऐसा कर सकते हैं, किन्तु वास्तविकता तो यही है कि इस पर्व का स्वर्ण की ख़रीदारी से कोई
सम्बन्ध नहीं है |
एक
अन्य महत्त्व इस पर्व का है | यह पर्व ऐसे समय आता है जो वसन्त ऋतु के समापन और
ग्रीष्म ऋतु के आगमन के कारण दोनों ऋतुओं का सन्धिकाल होता है | इस मौसम में गर्मी और उमस वातावरण में व्याप्त होती है | सम्भवतः इसी स्थिति को ध्यान में रखते हुए इस दिन सत्तू, खरबूजा, तरबूज, खीरा तथा जल
से भरे मिट्टी के पात्र आदि दान देने की परम्परा है अत्यन्त प्राचीन काल से चली आ
रही है | साथ ही यज्ञ की आहुतियों से वातावरण स्वच्छ हो जाता
है और इस मौसम में जन्म लेने वाले रोग फैलाने वाले बहुत से कीटाणु तथा मच्छर आदि
नष्ट हो जाते हैं – सम्भवतः इसीलिए इस दिन यज्ञ करने की भी परम्परा है |
अस्तु, ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि
तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्, ऊँ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो
विष्णु प्रचोदयात्... श्री लक्ष्मी-नारायण की उपासना के पर्व
अक्षय तृतीया तथा परशुराम जयन्ती की सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाओं के साथ एक
अत्यन्त महत्त्वपूर्ण
बात, इस समय किसी भी प्रकार का दिखावा अथवा नाम की इच्छा किये
बिना जितनी हो सके दूसरों की सहायता करें... क्योंकि जिनकी सहायता हम करते हैं
हमें उनके भी स्वाभिमान की रक्षा करनी है... इसीलिए तो गुप्त दान को सबसे श्रेष्ठ
माना गया है... साथ ही जो लोग ऑक्सीजन, दवाओं तथा कोरोना से सम्बन्धित किसी भी
वस्तु की जमाखोरी और कालाबाज़ारी में लगे हैं वे इतना अवश्य समझ लें कि यदि यह सत्य
है कि इस अवसर पर किये गए शुभकर्मों के फलों में वृद्धि होती है तो हमें यह भी नहीं
भूलना चाहिए कि इस अवसर पर किये गए दुष्कर्मों के फलों में भी वृद्धि होगी... और
साथ ही, कोरोना से बचने के उपायों जैसे मास्क पहनना, निश्चित दूरी बनाकर रखना तथा साफ़ सफाई का ध्यान रखना आदि का पूर्ण निष्ठा
से पालन करें ताकि इनसे प्राप्त होने वाले शुभ फलों में वृद्धि हो और समस्त जन
कोरोना को परास्त करने में समर्थ हो सकें... सभी के जीवन में
सुख-समृद्धि-सौभाग्य-ज्ञान-उत्तम स्वास्थ्य की वृद्धि होती रहे तथा हर कार्य में
सफलता प्राप्त होती रहे... यही कामना है...
_______________कात्यायनी...