आज अमावस्या तिथि है...
हम सभी ने अपने पितृगणों को विदा किया है पुनः आगमन की प्रार्थना के साथ...
अमावस्या का सारा कार्यक्रम पूर्ण करके कुछ पल विश्राम के लिए बैठे तो मन में कुछ
विचार घुमड़ने लगे... मन के भाव प्रस्तुत हैं इन पंक्तियों के साथ...
भरी भीड़ में मन बेचारा
खड़ा हुआ कुछ सहमा कुछ
सकुचाया सा
द्विविधाओं की लहरों
में डूबता उतराता सा…
घिरा हुआ
कुछ कुछ जाने कुछ अजाने / कुछ चाहे कुछ अनचाहे / नातों से…
कभी झूम उठता है देखकर
इतने अपनों को
होता है गर्वित और
हर्षित / देखकर उनके स्नेह को
सोचने लगता है / नहीं
है कोई उससे अधिक धनवान इस संसार में…
पूरी रचना सुनने के लिए
कृपया वीडियो देखें... कात्यायनी...