अभी दो तीन पूर्व हमारी एक मित्र के देवर जी का स्वर्गवास हो गया... असमय...
शायद कोरोना के कारण... सोचने को विवश हो गए कि एक महामारी ने सभी को हरा दिया...
ऐसे में जीवन को क्या समझें...? हम सभी जानते हैं जीवन मरणशील है... जो जन्मा
है... एक न एक दिन उसे जाना ही होगा... इसीलिए जीवन सत्य भी है और असत्य भी... भाव
भी है और अभाव भी... कुछ इसी तरह के उलझे सुलझे विचारों से युक्त है हमारी आज की
रचना... जीवन भाव भी अभाव भी... कात्यायनी...