छठ पूजा
शनिवार दो नवम्बर - कार्तिक
शुक्ल षष्ठी - छठ पूजा का पावन पर्व – जिसका आरम्भ कल यानी कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से ही हो जाएगा
और सारा वातावरण “हमहूँ अरघिया देबई हे छठी मैया” और “कांच ही बाँस के बहंगिया
बहंगी चालकत जाए” जैसे मधुर लोकगीतों से गुंजायमान हो उठेगा | सर्वप्रथम सभी को छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ...
जैसा कि सभी जानते हैं, छठ पर्व हिन्दू समुदाय के लिए मूलतः भगवान सूर्य
की आराधना का पर्व है | वास्तव में देखा जाए
तो हिन्दू धर्म के देवताओं में केवल सूर्य और चन्द्रमा ही ऐसे देवता हैं जिन्हें
मूर्त रूप में देखा तथा अनुभव किया जा सकता है | सम्भवतः
इसीलिए विभिन्न पर्वों पर इन्हीं की उपासना का विधान है |
साथ ही इन पर्वों के द्वारा इस वास्तविकता का भी भान होता है कि प्राचीन काल में
प्रकृति के प्रति कितना अधिक सम्मान का भाव न केवल समाज के एक विशिष्ट वर्ग अपितु
जन साधारण के मन में भी था | दक्षिण भारत में इस पर्व को स्कन्द षष्ठी के रूप में
भी मनाया जाता है | इस दिन भगवान शिव और पार्वती के पुत्र स्कन्द यानी कार्तिकेय
की पूजा अर्चना का विधान है |
एक नवम्बर को 24:52 (अर्द्धरात्रि में बारह बजकर पावन मिनट के लगभग) षष्टी
तिथि लग जाएगी जो तीन नवम्बर को 25:30 (अर्द्धरात्र्योत्तर
एक बजकर तीस मिनट) तक रहेगी | दो तारीख को सूर्योदय प्रातः छह बजकर तैंतीस मिनट पर
तथा सूर्यास्त सायं पाँच बजकर छत्तीस मिनट पर है | इस दिन व्रत रखने वाले लोग
प्रत्यूषा काल में यानी डूबते सूर्य को जल देंगे | कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से आरम्भ
हुए चार दिवसीय छठ पूजा का समापन कार्तिक शुक्ल सप्तमी यानी तीन नवम्बर के भोर के
स्नान के साथ होगा जिसमें उदित होते सूर्य को यानी प्रातः छह बजकर चौदह मिनट के
लगभग भगवान भास्कर को अर्घ्य समर्पित करेंगे |
सूर्य की शक्तियों का मुख्य
स्रोत हैं उनकी दो पत्नियाँ – उषा (भोर की प्रथम किरण) तथा प्रत्यूषा (सूर्यास्त
के समय की अन्तिम किरण) अथवा सन्ध्या | छठ पर्व के अवसर पर सूर्य के साथ उनकी इन दोनों शक्तियों
की भी आराधना की जाती है | प्रातःकाल में उषा की प्रथम किरण
के साथ आरम्भ होकर प्रत्यूषा काल में सूर्य की अन्तिम किरण तक पूजा अर्चना चलती
रहती है | ऐसा सम्भवतः इसलिए किया जाता रहा हो कि सूर्य को
ऊर्जा तथा जीवनी शक्ति का स्रोत माना जाता है | यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया
जाता है – चैत्र शुक्ल षष्ठी को और कार्तिक शुक्ल षष्ठी को | जिनमें कार्तिक शुक्ल षष्ठी के छठ पर्व को विशेष धूम धाम के साथ मनाया
जाता है | यह पर्व दीपावली के लगभग एक सप्ताह बाद पवित्र
नदियों के तटों पर मनाया जाता है |
छठ पूजा के सम्बन्ध में अनेक
कथाएँ प्रचलित हैं | माना
जाता है कि भगवान राम और माता सीता जब चौदह वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या वापस
लौटे थे तो उन्होंने दीपावली के छः दिन बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी को उपवास रखकर छठ पूजा
की थी | सूर्यवंशी होने के कारण भगवान राम के लिए भगवान
सूर्य की प्रार्थना आवश्यक ही थी |
एक अन्य मान्यता के अनुसार
सूर्यदेव और कुन्ती के पुत्र कर्ण ने षष्ठी पूजा के रूप में अपने पिता और समस्त
चराचर के लिए ऊर्जा प्रदान करने वाले सूर्यदेव की उपासना आरम्भ की थी | उसने घण्टों जल के मध्य खड़े होकर भगवान भास्कर को अर्घ्य
प्रदान किया था जिसके फलस्वरूप वह महान योद्धा बना | आज भी
कमर तक जल के मध्य खड़े होकर भगवान भास्कर को अर्घ्य प्रदान किया जाता है |
एक अन्य मान्यता के अनुसार
पाण्डवों के वनवास की अवधि में द्रौपदी ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी को उपवास रखकर
सूर्यदेव की उपासना की थी जिसके परिणामस्वरूप समस्त कुरुवंश का संहार करने में
पाण्डव समर्थ हुए थे |
कुछ लोग इसे माता कात्यायनी के
साथ भी जोड़ते हैं | षष्ठी
तिथि माता कात्यायनी की पूजा के लिए मानी जाती है, क्योंकि
नवदुर्गा में माता कात्यायनी का स्थान छठी देवी के रूप में माना जाता है |
एक मान्यता यह भी है कि कार्तिक
शुक्ल पञ्चमी के सूर्यास्त तथा षष्ठी के सूर्योदय के मध्य किसी समय महर्षि वशिष्ठ
की प्रेरणा से भगवान सूर्य की आराधना करते समय राजर्षि विश्वामित्र के मुख से
अनायास ही गायत्री मन्त्र फूट पड़ा था |
मान्यताएँ अनेक हैं – पौराणिक
भी और लोकमान्यताएँ भी – किन्तु मूल तथ्य यह है छठ पूजा मुख्य रूप से पूर्वी भारत
के बिहार, झारखण्ड,
पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाने
वाला भगवान भास्कर की आराधना का चार दिवसीय लोक पर्व है, जो
कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को आरम्भ होकर कार्तिक शुक्ल सप्तमी को सम्पन्न होता है |
ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य
धीमहि । धियो यो न: प्रचोदयात् ।।
सृष्टिकर्ता प्रकाशमान भगवान आदित्यदेव हम सबके
हृदयों से जड़ता का अन्धकार दूर कर चेतना, ज्ञान तथा सद्गुणों का प्रकाश पसारित करें, इसी
कामना के साथ सभी को छठ पूजा की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ…
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