Katyayani Devi
विद्यासु शास्त्रेषु विवेकदीपेषु वाद्येषु वाक्येषु च का त्वदन्या |
ममत्वगर्तेSतिमहान्धकारे, विभ्रामत्येतदतीव विश्वम् ||
देवी का छठा रूप कात्यायनी देवी का माना जाता है | इस रूप में भी इनके चार हाथ माने जाते हैं और माना जाता है कि इस रूप में भी ये शेर पर सवार हैं | इनके तीन हाथों में तलवार, ढाल और कमलपुष्प हैं तथा स्कन्दमाता की ही भाँति एक हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में दिखाई देता है |
एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रय भूषितं,
पातु नः सर्वभीतेभ्यः कात्यायनी नमोSस्तु ते
उपरोक्त मन्त्र के जाप द्वारा देवी कात्यायनी की उपासना की जाती है | देवासुर संग्राम में देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिये – महिषासुर जैसे दानवों का संहार करने के लिए – देवी महर्षि कात्यायन के आश्रम पर प्रकट हुईं और महर्षि ने उन्हें अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया, इसीलिये “कात्यायनी” नाम से उनकी प्रसिद्धि हुई | इस प्रकार देवी का यह रूप पुत्री रूप है | यह रूप निश्छल पवित्र प्रेम का प्रतीक है | किन्तु साथ ही यदि कहीं कुछ भी अनुचित होता दिखाई देगा तो ये कभी भी भयंकर क्रोध में भी आ सकती हैं |
ऐसा भी माना जाता है कि जिन कन्याओं के विवाह में बाधा आती है वे:
ॐ कात्यायिनी महामाये, सर्वयोगिन्यधीश्वरी
नन्दगोपसुतं देवी पतिं में कुरु, ते नमः ||
मन्त्र से कात्यायनी देवी की उपासना करें तो उन्हें उत्तम वर की प्राप्ति होती है | इसके अतिरिक्त “ऐं क्लीं श्रीं त्रिनेत्रायै नमः” माँ कात्यायनी का यह बीज मन्त्र है और इनकी उपासना के लिए इस बीज मन्त्र का जाप भी किया जा सकता है |
माना जाता है कि भगवती का यह रूप बृहस्पति का प्रतिनिधित्व करता है | देवगुरु बृहस्पति को सौभाग्य कारक तथा विद्या, ज्ञान - विज्ञान और धार्मिक आस्थाओं का कारक भी माना जाता है | अतः बृहस्पति को प्रसन्न करने के लिए कात्यायनी देवी की पूजा अर्चना की जानी चाहिए |
कात्यायनी देवी के रूप में माँ भगवती सभी की रक्षा करें और सभी की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करें…