ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय
वासुदेवाय धन्वन्तरये
अमृतकलशहस्ताय सर्वभयविनाशाय
सर्वरोगनिवारणाय |
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री
महाविष्णुस्वरूपाय
श्री धन्वन्तरीस्वरूपाय
श्रीश्रीश्री औषधचक्राय नारायणाय नमः ||
ॐ नमो भगवते धन्वन्तरये
अमृतकलशहस्ताय सर्व आमय
विनाशनाय त्रिलोकनाथाय
श्रीमहाविष्णुवे नम: ||
करक चतुर्थी और
अहोई अष्टमी सम्पन्न होते ही पाँच पर्वों की श्रृंखला दीपोत्सव का आरम्भ हो जाता
है | जिसकी प्रथम कड़ी है धन्वन्तरी त्रयोदशी अथवा धनतेरस | शुक्रवार तेरह नवम्बर
यानी कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को धनत्रयोदशी – जिसे धनतेरस के नाम से जानते हैं – यानी
देवताओं के वैद्य धन्वन्तरी की जयन्ती – धन्वन्तरी त्रयोदशी है | बारह नवम्बर को
रात्रि साढ़े नौ बजे के लगभग त्रयोदशी तिथि का आगमन होगा जो तेरह नवम्बर को सायंकाल
लगभग छह बजे तक रहेगी | प्रदोषकाल सायंकाल 5:25 से रात्रि 8:07 तक
रहेगा | वृषभ लग्न सायंकाल 5:32 से
रात्रि 7:28 तक रहेगी | इस प्रकार यही
समय धनतेरस की पूजा के लिए अनुकूल समय है… इसी दिन प्रदोष व्रत भी है और उसका
पारायण भी प्रदोषकाल में किया जाएगा… यम दीपक भी इसी समय प्रज्वलित किया जाएगा… काली चौदस भी
इसी दिन है... सायंकाल छह बजे के लगभग चतुर्दशी तिथि का आगमन होगा जो चौदह नवम्बर
को दिन में दो बजकर सत्रह मिनट तक रहेगी...
प्राचीन काल में
इस पर्व को इसी नाम से मनाते थे | कालान्तर में धन्वन्तरी का केवल “धन” शेष रह गया
और इसे जोड़ दिया गया धन सम्पत्ति के साथ, स्वर्णाभूषणों के साथ | पहले केवल पीतल
के बर्तन खरीदने की प्रथा थी क्योंकि वैद्य धन्वन्तरी की प्रिय धातु पीतल मानी
जाती है | लेकिन आजकल तो आभूषणों की दुकानों पर आज के दिन लोग पागलों की तरह टूटे
पड़ते हैं | किन्तु संसार के प्रथम चिकित्सक देवताओं के वैद्य धन्वन्तरी – जिन्हें
स्वयं देवता की पदवी प्राप्त हो गई थी - का स्मरण शायद ही कुछ लोग करते हों –
जिनका जन्मदिन वैदिक काल से धन्वन्तरी त्रयोदशी के नाम से मनाया जाता रहा है | इस
दिन “धनतेरस” की शुभकामनाओं के मैसेजेज़ की भरमार होती है व्हाट्सएप और दूसरी सोशल
नेटवर्किंग साईट्स पर, लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य भूल चुके हैं – वैद्य धन्वन्तरी की जयन्ती...
ऐसा शायद इसलिए कि हम “पहला सुख निरोगी काया...” की प्राचीन कहावत को भूल चुके
हैं...
इस दिन नया
बर्तन खरीदने की प्रथा के अनेकों कारण हो सकते हैं | एक तो ऐसी मान्यता है कि
क्योंकि वैद्यराज धन्वन्तरी हाथ में अमृतकलश लिए प्रकट हुए थे तो उसी के प्रतीक
स्वरूप नवीन पात्र खरीदने की प्रथा चली होगी | दूसरे, प्राचीन काल में हर
दिन नया सामान नहीं खरीदा जाता था – एक तो खरीदने की क्षमता नहीं थी, दूसरे अधिकतर लोग खेतिहर थे और सारा समाज इससे प्रभावित होता था, तो उनके
पास इतना समय ही नहीं होता था | इसलिए तीज त्योहारों पर ही खरीदारी प्रायः की जाती
थी | और दीपावली का पर्व क्योंकि पाँच पर्वों के साथ आता है इसलिए इस पर्व का कुछ
अधिक ही उत्साह होता था तो दीपावली से एक दिन पूर्व धन्वन्तरी भगवान की पूजा और
दूसरे दिन लक्ष्मी पूजन के निमित्त नवीन पात्र खरीद लिया जाता था और साथ में घर
गृहस्थी में काम आने वाली अन्य वस्तुएँ जैसे बर्तन आदि भी खरीद लिए जाते थे |
बहरहाल, वैद्य धन्वन्तरी एक
महान चिकित्सक थे और इन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता था | समुद्र मन्थन के
दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को इनका अवतरण हुआ था, और इनके एक दिन बाद अर्थात
कार्तिक कृष्ण अमावस्या को भगवती लक्ष्मी का | इसीलिए कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को
धन्वन्तरी त्रयोदशी के रूप में मनाये जाने की प्रथा थी और अमावस्या को लक्ष्मी पूजन
का विधान था |
माना जाता है वैद्य
धन्वन्तरी ने ही अमृततुल्य औषधियों की खोज की थी | भाव प्रकाश, चरक संहिता आदि
अनेक ग्रन्थों में इनके अवतरण के विषय में विवरण प्राप्त होते हैं | जिनमें थोड़े बहुत
मतान्तर हो सकते हैं, लेकिन एक तथ्य पर सभी एकमत हैं – और वो यह है कि वैद्य
धन्वन्तरी सभी रोगों के निवारण में निष्णात थे | उन्होंने भारद्वाज ऋषि से
आयुर्वेद ग्रहण करके उसे अष्टांग में विभाजित करके अपने शिष्यों में बाँट दिया था |
काशी नगरी के संस्थापक काशीराज की चतुर्थ पीढ़ी में आने वाले वैद्य धन्वन्तरी को
पौराणिक काल में वही महत्त्व प्राप्त था जो वैदिक काल में अश्विनी कुमारों को था |
पुराण ग्रन्थों में भगवान विष्णु के
अंश के रूप में धन्वन्तरी का उल्लेख प्राप्त होता है | उनका प्रादुर्भाव समुद्रमन्थन
के बाद निर्गत कलश से अण्ड के रूप में हुआ | समुद्र के निकलने के बाद उन्होंने
भगवान विष्णु से कहा कि लोक में मेरा स्थान और भाग निश्चित कर दें | इस पर विष्णु
ने कहा कि यज्ञभाग का विभाजन तो देवताओं में पहले ही हो चुका है अतः यह अब सम्भव नहीं
है | देवों के बाद आने के कारण तुम देव अर्थात ईश्वर नहीं हो | अतः तुम्हें अगले
जन्म में सिद्धियाँ प्राप्त होंगी और तुम लोक में प्रसिद्ध होगे | तुम्हें उसी
शरीर से देवत्व प्राप्त होगा और द्विजातिगण तुम्हारी सभी तरह से पूजा करेंगे | तुम
आयुर्वेद का अष्टांग विभाजन भी करोगे | द्वितीय द्वापर
युग में तुम पुन: जन्म लोगे इसमें कोई सन्देह नहीं है |
कहते हैं कि इस वर के अनुसार पुत्रकाम काशिराज धन्व की
तपस्या से प्रसन्न हो कर भगवान विष्णु ने उसके पुत्र के रूप में जन्म लिया और धन्वन्तरी
नाम धारण किया | धन्व काशी नगरी के संस्थापक काश के पुत्र थे |
और भी बहुत से विवरण वैद्यराज धन्वन्तरी
के सम्बन्ध में उपलब्ध होते हैं | इन सभी का अभिप्राय यही है कि समस्त संसार अपने
स्वास्थ्य की दिशा में जागरूक रहे |
देवताओं के
वैद्य तथा आयुर्वेद के जनक वैद्य धन्वन्तरी को श्रद्धापूर्वक नमन करते हुए सभी को अग्रिम
रूप से धन्वन्तरी त्रयोदशी – धनतेरस – की हार्दिक शुभकामनाएँ... इस आशा के साथ कि
सभी के पास प्रचुर मात्रा में स्वास्थ्य रूपी धन रहे... क्योंकि उत्तम स्वास्थ्य से बड़ा कोई धन नहीं... ये धन हमारे पास है
तो हम अपने सभी कार्य समय पर और पूर्ण उत्साह के साथ सम्पन्न करते हुए अपनी समस्त
भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति भी उचित रूप से कर सकते हैं...
ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम्
||
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम् |
वन्दे धन्वन्तरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम् ||