ध्यान और इसका अभ्यास
हिमालयन योग परम्परा के गुरु स्वामी वेदभारती जी की पुस्तक Meditation
and it’s practices के कुछ अंश ध्यान के साधकों के लिए...
ध्यान एक प्रक्रिया :---
ध्यान की प्रक्रिया में मन से आग्रह
किया जाता है सोचने विचारने, स्मरण करने, समस्याओं का समाधान करने और भूतकाल की घटनाओं अथवा भविष्य की आशाओं पर
केन्द्रित होने के स्वभाव को छोड़ने का | ध्यान के द्वारा हमें
मन में निरन्तर चल रहे विचारों और अनुभवों की गति को धीमा करने में सहायता प्राप्त
होती है और मन धीरे धीरे इन गतिविधियों के स्थान पर अन्तःचेतना और जागरूकता पर
केन्द्रित होना आरम्भ कर देता है, क्योंकि ध्यान समस्याओं और
परिस्थितियों के विषय में नहीं सोचता | ध्यान न तो हवाई किले
बनाने जैसी स्थिति है, न दिवास्वप्न है, और न ही इसमें मन को व्यर्थ में कल्पना जगत में विचरण करने की अनुमति है | ध्यान में स्वयं के साथ ही वार्तालाप अथवा विचार विमर्श भी नहीं चलता और
न ही सोच विचार में वृद्धि होती है | ध्यान तो सरल, शान्त और प्रयास रहित केन्द्र बिन्दु है चेतना और जागरूकता का |
ध्यान के अभ्यास में सबसे पहले प्रयास
किया जाता है कि हमारे मन में जो भी व्यवधान हैं,
पूर्वाग्रह हैं, निरन्तर प्रवाहित होती रहने वाली
विचारश्रृंखलाएँ हैं और इस दृश्य जगत के बहुत सारे जो अनुभव हमारे मन के साथ जुड़े
हुए हैं वे सब समाप्त हो जाएँ | और इसके लिए हम मन को रिक्त
करने का प्रयास नहीं करते – क्योंकि यह सम्भव ही नहीं है |
अपितु इसके लिए हम मन को किसी अन्तर्निहित गूढ़ तत्व अथवा वस्तु पर केन्द्रित होने
देते हैं, जिससे हमारी चेतना आत्मकेन्द्रित हो जाती है | मन को इस प्रकार आत्मकेन्द्रित करके हम मन की दूसरी तनावपूर्ण प्रक्रियाओं
जैसे किसी बात की चिन्ता करना, योजना बनाना, सोचना अथवा कारण तलाश करना आदि को शान्त करने में सहायता करते हैं |
https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2019/10/01/meditation-and-its-practices-4/