अल्पानामपि वस्तूनां संहति: कार्यसाधिका
तॄणैर्गुणत्वमापन्नैर्बध्यन्ते मत्तदन्तिन:।। हितोपदेश 1/35
छोटी छोटी वस्तुओं को भी यदि एक स्थान पर एकत्र किया जाए तो उनके द्वारा बड़े से बड़े कार्य भी किये जा सकते हैं | उसी प्रकार जैसे घास के छोटे छोटे तिनकों से बनाई गई डोर से एक मत्त हाथो को भी बाँधा जा सकता है |
वास्तव में एकता में बड़ी शक्ति है ऐसा हम सभी जानते हैं | तो क्यों न आज गणतन्त्र दिवस के शुभावसर पर हम सभी मनसा वाचा कर्मणा एक हो जाने का संकल्प लें ?
इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि हम सब एक जैसे ही कार्य करें, एक जैसी ही बोली बोलें या एक जैसे ही विचार रखें | निश्चित रूप से ऐसा तो सम्भव ही नहीं है | प्रत्येक व्यक्ति की पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यावसायिक आदि विभिन्न परिस्थितियों की आवश्यकताओं के अनुसार हर व्यक्ति मनसा वाचा कर्मणा एक दूसरे से अलग ही होगा | हर कोई एक ही बोली नहीं बोल सकता | हर व्यक्ति की सोच अलग होगी | हर व्यक्ति का कर्म अलग होगा |
मनसा वाचा कर्मणा एक होने का अर्थ है कि हम चाहे अपनी परिस्थितियों के अनुसार जो भी कुछ करें, पर मन वचन और कर्म से किसी अन्य को किसी प्रकार की हानि पहुँचाने का जाने अनजाने प्रयास न करें | और जब आवश्यकता हो तो पूरी दृढ़ता के साथ एक दूसरे को सहयोग दें |
मनसा वाचा कर्मणा एक सूत्र में गुँथने का अर्थ है कि हम अपनी व्यक्तिगत समस्याओं और आवश्यकताओं के साथ साथ सामूहिक समस्याओं और आवश्यकताओं पर भी ध्यान दें… जैसे बच्चों और महिलाओं का सशक्तीकरण यानी Empowerment… और बच्चों तथा महिलाओं का स्वास्थ्य यानी Good Health… यदि इन दोनों विषयों के लिए हम सामूहिक प्रयास करते हैं तो हम मनसा वाचा कर्मणा एकता की डोरी में ही गुँथे हुए हैं…
सर शान से उठाए लहराता तिरंगा भी यही तो सन्देश देता है कि कितनी भी विविधताएँ हो, कितने भी वैचारिक मतभेद हों, किन्तु अन्ततोगत्त्वा राष्ट्रध्वज के केन्द्र में चक्रस्वरूप सबके विचारों का केन्द्र देश ही होता है… अर्थात अपने अपने कार्य करते हुए, अपनी अपनी सोच के साथ, अपनी अपनी भाषा का सम्मान करते हुए साथ मिलकर आगे बढ़ते जाना… ऐसी स्थिति में न विचार बाधा बनेंगे, न भाषा, न वर्ण, न वेश, और न ही कर्म… ऐसे देश को निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर होने से कोई रोक नहीं सकता…
एकता की इसी भावना के साथ सभी को गणतन्त्र दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ…