मन की प्रसन्नता किसी पद, प्रतिष्ठा अथवा सम्मान पर निर्भर नहीं करती | यह नर्भर करती है इस बात पर कि जो लोग हमारे साथ हैं उनके साथ हमारे सम्बन्ध कैसे हैं, उनके साथ हमारा व्यवहार कैसा है |
दूसरों के साथ मधुर सम्बन्ध बनाए रखने की सबसे पहली आवश्यकता है इस बात की कि उनकी बात को ध्यानपूर्वक सुनकर उनके विचारों और भावनाओं को समझने का प्रयास किया जाए | और दूसरों के विचारों तथा भावनाओं को समझने के लिए आवश्यक है कि सबसे पहले अपने विचारों तथा भावनाओं को सन्तुलित, संयमित और सकारात्मक बनाने का प्रयास किया जाए – अपने मन से भय, क्रोध, घृणा जैसे नकारात्मक विचारों को निकाल फेंका जाए और पहले ही से किसी के लिए नकारात्मक सोच बनाकर न बैठा जाए | यदि नकारात्मक विचार मन में होंगे तो सारे संसार में हमें नकारात्मक ही देखाई देगी |
दूसरों को हम वैसा ही समझते हैं जैसे हमारे विचार अथवा हमारी भावनाएँ होती हैं | हमारे विचार सकारात्मक होंगे तो हमारे मन में आनन्द की सरिता नितन्तर प्रवाहमान रहेगी और समूचा संसार हमें प्रेममय दिखाई देने लगेगा, क्योंकि समूची प्रकृति ही प्रेममयी है… आनन्दमयी है… हमारा मन और जीवन शैली बच्चों जैसी सरल होगी तो दूसरों के साथ हमारे सम्बन्धों में भी सरलता की मिठास घुली रहेगी…
हम सब सरल, सकारात्मक, प्रेममय और आनन्दमय जीवन व्यतीत करें, इसी भाव के साथ शुभकामना कि सभी का आज का दिन मंगलमय हो…