चैत्र नवरात्र, जिन्हें वासन्तिक अथवा साम्वत्सरिक नवरात्र के नाम से भी जाना जाता है कल चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ हो रहे हैं और रामनवमी को इनका समापन होगा | इसीलिए इन्हें राम नवरात्र भी कहा जाता है | चैत्र और आश्विन दोनों ही नवरात्र में हिन्दू धर्मावलम्बी शक्ति उपासना करते हैं जो हिन्दू समाज में नारी शक्ति के महत्त्व को तथा पुरुष और प्रकृति के संयुक्त रूप की महत्ता को सिद्ध करता है | पुरुष अर्थात शिव जब तक प्रकृति अर्थात शक्ति के साथ संयुक्त नहीं होगा तब तक उसकी सामर्थ्य अधूरी है |
नवरात्र में की जाने वाली भगवती दुर्गा के नौ रूपों की उपासना वास्तव में नवग्रहों की उपासना भी है | कथा आती है कि देवासुर संग्राम में समस्त देवताओं ने अपनी अपनी शक्तियों को एक ही स्थान पर इकट्ठा कर दिया था – देवी को भेंट कर दिया था | माना जाता है कि वे समस्त देवता और कोई नहीं, नवग्रहों के ही विविध रूप थे | साथ ही जब देवी ने स्वयं को अनेक रूपों में बाँट कर दानवों से युद्ध किया तो वे नव रूप ही नव दुर्गा कहलाए और वे नवरूप ही नवग्रहों के रूप में पूजे जाते हैं | इस प्रकार दुर्गा के नौ रूपों में प्रत्येक रूप एक ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है |
जो भी हो, नवरात्रों के नौ दिनों में पूर्ण भक्तिभाव से देवी के इन रूपों की क्रमशः पूजा अर्चना की जाती है | ये समस्त रूप सम्मिलित भाव से इस तथ्य का भी समर्थन करते हैं कि शक्ति सर्वाद्या है | उसका प्रभाव महान है | उसकी माया बड़ी कठोर तथा अगम्य है तथा उसका महात्मय अकथनीय है | और इन समस्त रूपों का सम्मिलित रूप है वह प्रकृति अथवा योगशक्ति जो समस्त चराचर जगत का उद्गम है तथा जिसके द्वारा भगवान समस्त जगत को धारण किये हुए हैं – दुर्गा भगवती भद्रा ययेदं धार्यते क्वचित् |
पूरे भक्ति भाव से दुर्गा सप्तशती में देवी की तीनों चरित्रों – मधुकैटभ वध, महिषासुर वध और शुम्भ निशुम्भ का उनकी समस्त सेना के सहित वध की कथाओं का पाठ किया जाता है | इन तीनों चरित्रों को पढ़कर इहलोक में पल पल दिखाई देने वाले अनेकानेक द्वन्द्वों का स्मरण हो आता है | किन्तु देवी के ये तीनों ही चरित्र इस लोक की कल्पनाशीलता से बहुत ऊपर हैं | दुर्गा सप्तशती किसी लौकिक युद्ध का वर्णन अवश्य प्रतीत होती है, किन्तु वास्तव में यह एक अत्यन्त दिव्य रहस्य को समेटे एक ऐसा महान उपासना ग्रन्थ है जिसमें समस्त चराचर जगत – समस्त प्रकृति – समस्त ब्रह्माण्ड – के लिए कल्याण की कामना है…
देवी प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद, प्रसीद मातर्जगतोSखिलस्य |
प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं, त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ||