कलश स्थापना और नवरात्र
भारतीय वैदिक परम्परा के अनुसार किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को करते समय सर्वप्रथम कलश स्थापित करके वरुण देवता का आह्वाहन किया जाता है | घट स्थापना का एक पूरा विधान है | घट स्थापना करते समय मन्त्र बोले जाते हैं:
कलशस्य मुखे विष्णुः, कण्ठे रुद्रो समाहिताः |
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा, मध्ये मातृगणा: स्मृता: ||
कुक्षौ तु सागरा: सर्वे, सप्तद्वीपा वसुन्धरा |
ऋग्वेदोSथ यजुर्वेदः सामवेदो ही अथर्वण: ||
अंगैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिता: |
अत्र गायत्री सावित्री शान्ति: पुष्टिकरी तथा ||
सर्वे समुद्रा: सरित: जलदा नदा:, आयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षयकारका: |
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती,
नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरुम् ||
अर्थात कलश के मुख में विष्णु, कण्ठ में रूद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में समस्त षोडश मातृकाएँ स्थित हैं | कुक्षि में समस्त सागर, सप्तद्वीपों वाली वसुन्धरा स्थित है | साथ ही सारे वेड वेदांग भी कलश में ही समाहित हैं | सारी शक्तियाँ कलश में समाहित हैं | समस्त पापों का नाश करने के लिए जल के समस्त स्रोत इस कलश में निवास करें |
इस प्रकार घट में समस्त ज्ञान विज्ञान का, समस्त ऐश्वर्य का तथा समस्त ब्रह्माण्डों का समन्वित स्वरूप विद्यमान माना जाता है | किसी भी अनुष्ठान के समय ब्रहमाण्ड में उपस्थित शक्तियों का आह्वाहन करके उन्हें जागृत किया जाता है ताकि साधक को अपनी साधना में सिद्धि प्राप्त हो और उसकी मनोकामनाएँ पूर्ण हों | साथ ही घट स्वयं में पूर्ण है | सागर का जल घट में डालें या घट को सागर में डालें – हर स्थिति में वह पूर्ण ही होता है तथा ईशोपनिषद की पूर्णता की धारणा का अनुमोदन करता प्रतीत होता है “पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते” | इसी भावना को जीवित रखने के लिए किसी भी धार्मिक अनुष्ठान के समय घटस्थापना का विधान सम्भवतः रहा होगा |
नवरात्रों में भी इसी प्रकार घट स्थापना का विधान है | इस वर्ष 18 मार्च से “विलम्बी” नामक सम्वत्सर का आरम्भ होने जा रहा है – जिसके लिए माना जाता है कि जन साधारण में धन धान्य और सुख समृद्धि की प्रचुरता रहने की सम्भावना है | इस सम्वत्सर का देवता “विश्वेदेव” को माना जाता है | जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है “विश्वेदेव” से तात्पर्य सभी देवताओं से है | ऋग्वेद में विश्वेदेव की स्तुति के अनेक मन्त्र उपलब्ध होते हैं | इन्हें मानवों का रक्षक तथा सत्कर्मों का सुफल प्रदान करने वाला माना जाता है | ऐसा विश्व का देव जिस सम्वत्सर का देवता हो वह सम्वत्सर भी निश्चित रूप से जन साधारण के लिए शुभ ही होना चाहिये…
माँ भगवती सबकी मनोकामना पूर्ण करें, इसी भावना से घटस्थापना के साथ कल से आरम्भ हो रहे नवरात्रों की तथा “विलम्बी” नामक नवसम्वत्सर की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ…