शृणु त्वं नृपशार्दूल कृष्णमाघस्य या भवेत् |
षट्तिला नाम विख्याता सर्वपापप्रणाशिनी || (पद्मपुराण 43/3)
हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का बड़ा महत्त्व माना जाता है | माह के दोनों पक्षों की ग्यारहवीं तिथि एकादशी कहलाती है और इस प्रकार कुल मिलाकर बारह महीनों में हर एक वर्ष में चौबीस एकादशी आती हैं | जब अधिकमास होता है तो दो एकादशी और बढ़कर इनकी संख्या छब्बीस हो जाती है |
पद्मपुराण में एकादशी का बहुत ही महात्मय बताया गया है एवं उसकी विधि विधान का भी उल् लेख किया गया है । पद्मपुराण के ही एक अंश को लेकर हम षट्तिला एकादशी का व्रत करते हैं । पद्मपुराण में पुलस्त्य ऋषि ने दलभ्य ऋषि को षट्तिला एकादशी के व्रत का विधान बताया है | ऋषि पुलस्त्य के अनुसार माघ का महीना पवित्र और पावन होता है | इस माघ माह में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को षट्तिला एकादशी कहते हैं ।सारी ही एकादशी की भाँति षट्तिला एकादशी भी भगवान विष्णु को ही समर्पित है | इस दिन विधि विधान पूर्वक भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करके भगवान विष्णु को अर्घ्य समर्पित करना चाहिए |
कृष्णकृष्णकृपालुस्त्वमगतीनाम् गतिर्भव,
संसारार्णवमग्नानां प्रसीद पुरुषोत्तम !
नमस्ते पुण्डरीकाक्ष नमस्ते विश्वभावन,
सुब्रह्मण्य नमस्तेSस्तु महापुरुषपूर्वज ||
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं लक्ष्म्या सह जगत्पते || (पद्मपुराण 43/18,19)
इस दिन तिलों तथा तिलों से निर्मित वस्तुओं के दान का विशेष महत्त्व माना जाता है | भारतीय वैदिक ज्योतिषी – Vedic Astrologers – तथा भारतीय हिन्दू जनमानस की ऐसी मान्यता है कि इस दिन तिलों का छह प्रकार से उपयोग किया जाना चाहिए, जैसे तिलमिश्रित जल से स्नान, तिल का तिलक, तिलमिश्रित जल का सेवन, तिलमिश्रित जल से अर्घ्य, तिल से बने पदार्थों का भोजन और तिल से हवन करना कल्याणकारी होता है | सम्भवतः इसीलिए इसका नाम षट्तिला एकादशी है | साथ ही एक बात और भी महत्त्वपूर्ण है कि उत्तर भारत में जब षट्तिला एकादशी का व्रत किया जाता है उन दिनों सर्दी का मौसम होता है तथा तिलों का सेवन बहुतायत में किया जाता है तथा लाभकारी माना जाता है |
मान्यताएँ जो भी हों, षट्तिला एकादशी के अवसर पर यही प्रार्थना है कि भगवान वासुदेव समस्त संसार का कल्याण करें…
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय…