Horoscope
जन्म कुण्डली
व्यक्ति के जन्म के समय ग्रह नक्षत्रों तथा राशियों आदि की जो स्थिति होती है उनका जो चक्र बनाया जाता है वह कुण्डली अथवा जन्म लग्न पत्रिका कहलाती है | ग्रह नक्षत्रों आदि की स्थिति हर स्थान पर एक सी नहीं होती | हर देश, प्रान्त तथा शहर में स्थानीय समय के अनुसार सूर्य का तथा विभिन्न राशियों का उदय होता है | इस इष्ट काल को जानने के लिए किसी भी ज्योतिषी को पञ्चांग का ज्ञान होना आवश्यक है | इष्टकाल में जो राशि पूर्व में उदय होती है वही लग्न कहलाती है और वह जन्म कुण्डली का प्रथम भाव या घर होता है | उसके बाद फिर क्रमशः हर भाव में एक एक राशि रखी जाती है | इन बारह भावों में समस्त नवग्रहों की स्थिति होती है | जिनमें राहु और केतु को छोड़कर शेष सात ग्रह बारह राशियों के अधिपति होते हैं
जातक की लग्न कुण्डली तैयार हो जाती है तो उसके बाद फिर उसके नवांश, दशांश, द्वादशांश इत्यादि विभिन्न वर्ग बनाए जाते हैं | प्रत्येक वर्ग व्यक्ति के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करता है | उसके पश्चात लग्न कुण्डली तथा इन वर्ग कुण्डलियों का तुलनात्मक अध्ययन करके तथा उनमें राशियों, ग्रहों और नक्षत्रों की अलग अलग स्थितियों के आधार पर, इनके बलाबल के आधार पर तथा इनके स्वभाव आदि के आधार पर कुण्डली का अध्ययन करके एक ज्योतिषी व्यक्ति के जीवन में घटने वाली सम्भावित शुभाशुभ घटनाओं के विषय में फलकथन करता है तथा जीवन के विविध क्षेत्रों में उसका मार्गदर्शन करता है |
इस प्रकार ज्योतिष विज्ञान सम्भावनाओं का विज्ञान होते हुए भी पूर्ण रूप से वैज्ञानिक पद्धति है | व्यक्ति के जन्म के समय ग्रह नक्षत्रों की जो स्थिति होती है उनका प्रभाव न केवल मनुष्य पर बल्कि समूची प्रकृति पर पड़ता है | किसी व्यक्ति की कुण्डली का अध्ययन करके एक Vedic Astrologer एक सम्भावित जानकारी व्यक्ति को दे सकता है कि उसके जीवन की दिशा क्या हो सकती है तथा उसे अपने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए किस प्रकार के प्रयास करने चाहियें |
जातक की कुण्डली का गहनता के साथ समग्र रूप से अध्ययन करके व्यक्ति के जीवन में घटित होने वाली सम्भावित घटनाओं की जानकारी व्यक्ति को देने का प्रयास एक Vedic Astrologer करता है और व्यक्ति उन सबको ध्यान में रखकर लक्ष्य प्राप्ति के लिए उचित प्रयास करना आरम्भ कर देता है | उदाहरण के लिए, व्यक्ति की जन्मकुण्डली के अध्ययन से या ज्ञात हो सकता है कि उसके लिए किस प्रकार का व्यवसाय उचित रहेगा और उसके लिए उसे किस प्रकार का अध्ययन करना चाहिए, कौन सा समय ऐसा है जब उसके विवाह के प्रबल योग बन रहे हैं इत्यादि इत्यादि…
इस प्रकार जातक की जन्म कुण्डली का निर्माण एक अत्यन्त गहन गणितीय प्रक्रिया है और वैदिक फलित ज्योतिष का सबसे प्रमुख अंग है…
अन्त में यही, कि दिशा निर्देश देना ज्योतिषी का कार्य है, किन्तु कर्म तो आपको करना ही होगा | आपकी ग्रह दशाएँ कितनी भी अनुकूल क्यों न हों, यदि आप एकनिष्ठ होकर सार्थक प्रयास नहीं करेंगे तो अनुकूल दशाओं को प्रतिकूल परिणाम देने में भी देर नहीं लगेगी…