जीवन और मरण निरन्तर चलती रहने वाली प्रक्रियाएँ हैं... मरण के बाद भी जीवन
की रामकहानी समाप्त नहीं होने पाती... किसी नवीन रूप में फिर से आगे बढ़ चलती है...
यही है संहार और निर्माण की सतत चलती रहने वाली प्रक्रिया... इसी प्रकार के उलझे
सुलझे से विचारों से युक्त है हमारी आज की रचना... अभी शेष है...
कितने ही दिन मास वर्ष युग कल्प थक गए कहते कहते
पर जीवन की रामकहानी कहते कहते अभी शेष है ||
हर क्षण देखो घटता जाता साँसों का यह कोष मनुज का
और उधर बढ़ता जाता है वह देखो व्यापार मरण का ||
सागर सरिता सूखे जाते, चाँद सितारे टूटे जाते
पर पथराई आँखों में कुछ बहता पानी अभी शेष है ||
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