मंज़िल की तलाश में जब व्यक्ति
निकलता है तो आवश्यक नहीं कि उसका लक्ष्य उसे सरलता से प्राप्त हो जाए... कभी कभी
तो बहुत अधिक प्रयास करना पड़ता है... कई बार यही नहीं मालूम होता कि किस मार्ग से
आगे बढ़ा जाए... लेकिन एक सत्य यह भी है कि मार्ग में यदि बाधाएँ होती हैं... आड़े
तिरछे मोड़ होते हैं... तो वहीं कुछ न कुछ ऐसा भी घटित होता रहता है जो मन के
अनुकूल होता है... कुछ इसी प्रकार के उलझे सुलझे से भावों से गुँथी है हमारी आज की
रचना... पथ मंज़िल का... पर्वतीय क्षेत्रों से क्योंकि अधिक सम्बन्ध रहा इसीलिए
सम्भवतः वही इस रचना में प्रतिध्वनित हो रहा है... कात्यायनी...