क्षोभ
दिनेश डॉक्टर
क्षोभ हिंदी का एक ऐसा शब्द है जिसके हूबहू भाव
वाला शब्द शायद किसी दूसरी भाषा में न हो । क्षोभ यानी खीज और दुख वाला ऐसा क्रोध
जिसमे आप खुद को असहाय अनुभव करें । क्षोभ ऐसे लोगों को ज्यादा होता है जो देश और
समाज की छोटी छोटी चीजों को लेकर जरूरत से ज्यादा सेंसिटिव होते है । यानि के जो
गैंडे की खाल वाले या चिकने घड़े होते है उन्हें क्षोभ होने की संभावना बहुत कम
होती है ।
अब जैसे किसी पार्क में सिर्फ पैदल घूमने के
सुंदर रास्ते पर आप शांत भाव से आनंद से चहलकदमी कर रहे है और अचानक ही कोई
बाहुबली टाइप का बंदा साइकिल या मोटर साइकिल लेकर घुस आये तो आप यदि सेंसिटिव टाइप
है तो आपको बहुत क्षोभ होगा पर आप कहेंगे और करेंगे कुछ नही । जैसे झाड़ू लगी साफ
सड़क पर बस या कार की खिड़की से लोग पान की पीक थूकें, चिप्स के खाली रैपर और केले के छिलके उछालें तो गैंडे की खाल वालों और
चिकने घड़ों को कोई फ़र्क़ नही पड़ेगा पर आप जैसे सेंसिटिव टाइप के बन्दे घर पहुंच कर
भी क्षोभ में ही रहेंगे ।
पहले इधर उत्तर भारत में नवरात्रों के बाद उगाए
हुए थोड़े बहुत यवों और उनकी मिट्टी को पूजा के बाद फूलों सहित चलती हुई नदी के जल
में प्रवाहित करने की परम्परा थी पर अब पता नही कैसे इधर भी घर घर में महाराष्ट्र
की रंग बिरंगे गणपति बैठा कर नदियों में प्रवाहित करने की परम्परा फैल गयी है ।
पहले से ही गंदा नाला बन चुकी नदियों के अंदर और किनारों तक बदरंग और अंगविहीन हुए
गणपतियों के ढेर देखकर सेंसिटिव बंदों को जबरदस्त क्षोभ पकड़ लेता है ।
प्रसिद्ध लेखक असग़र वज़ाहत की एक लघु कथा है ।
पेंट की ज़िप खोलकर पवित्र नदी में मूतते हुए एक गैंडे की खाल वाले को जब एक
सेंसिटिव बन्दा अत्यंत क्षुब्ध होकर, जो शायद लेखक खुद रहा हो, टोकता है तो मूतने वाला बन्दा बड़ी हेकड़ी और बदतमीज़ी से
उसे यह कह कर कि नदी क्या उसके बाप की है, जलील कर देता है ।
सेंसिटिव बन्दा अत्यंत क्षोभ से पीड़ित घर पहुंचकर, पूरे
किस्से पर लघु कथा लिखकर जैसे तैसे स्वयम को शांत करता है ।
दरअसल ये दौर सेंसिटिव बंदों के घुट घुट के मरने
का चल रहा है । कभी उन्हें सड़क पर मोटर साइकिलों और कारों के तेज़ हार्न दुखी करते
है तो कभी आसपास मोबाइल पर तेज़ आवाज में
चिल्लाते लोग ।कभी वे सुबह सुबह अखबार की हैड लाइंस पढ़ते ही क्षुब्ध होने शुरू
होते है तो कभी टेलीविजन चैनलों की चीखती ब्रेकिंग न्यूजों से उनका ब्लड प्रेशर
ऊपर नीचे होना शुरू हो जाता है । उनकी भूख गायब हो रही है । आंख बन्द करते ही सपनो
में लाठी छुरे बंदूक लिए लोग मारने को दौड़ रहे है । जैसे ही वे डर का इज़हार करने
की ज़ुर्रत करते है तो लोग उन्हें देश छोड़ने की सलाह देकर सोशल मीडिया पर ट्रोल
करने लगते है ।
आजकल बेचारे दुकानों पर गैंडे की खाल ढूंढते फिर
रहे हैं ।