एक बार एक गांव में एक सज्जन पुरूष रहते थे, वे बहुत ही दयालू तथा हृदय ग्राही थे, किसी को भी कभी अपशब्द नहीं कहते थे। जो भी उनके घर आता वे अच्छे से उसका आथित्य सत्कार करते। लोग उनसे सलाह मशविरा लेने आया
गर्मियों के दिन थे। सुबह-सुबह सेठ जी अपने बगीचे में घूमते-घामते ताजी-ताजी हवा का आनन्द उठा रहा थे। फल-फूलों से भरा बगीचा माली की मेहनत की रंगत बयां कर रहा था। हवा में फूलों की भीनी-भीनी खुशबू बह र
पाठकजनों ने अभी तक भाग-01 पढ़ा, अब भाग- 02 पढ़िए:- भविष्य के लिए कुछ नहीं किया। जिस कारण से उस व्यक्ति का मानव जीवन व्यर्थ गया। कबीर जी ने कहा है कि:- क्या मांगुँ कुछ थिर ना र
जब तक यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान नहीं होता तो जन-साधारण की धारणा होती है कि:-1) बड़ा होकर पढ़-लिखकर अपने निर्वाह की खोज करके विवाह कराकर परिवार पोषण करेंगे। बच्चों को उच्च शिक्षा तक पढ़ाऐंगे। फिर उनको रोजगा
'आजी' मर गयी।रात में दूध रोटी खा के सोयी थी। माई से तेल लगवाई थी। बाबू से दवा खाई थी। सुबह कुसुमिया गयी थी चाय देने तो आँख नहीं खुल रहा था। बबलू दौड़ा। बबलिया दौड़ी। बाबु-माई दौडे।गाँव भर
लाला गिरधारी लाल के पोते की अभी नयी नयी शादी हुई थी पांच पीढ़ियों से लाला जी के यहां लड़की का जन्म नही हुआ था गिरधारी लाल जी के पिता जी की भी कोई बहन नही थी ।हर साल पंडित आकर रक्षाबंधन पर राखी ब
इस शरीर में आंखों की गहराई,मन की गहराई से ज्यादाहृदय की गहराई है।ये गहराई इतनी गहरी हैं किइसकी गहराई किसी को पता नहीचाहे तीन लोक की सम्पत्ति भी मिल जाए तो भी हम इसकी गहराई को भर नहीं सकतेन किसी पद से,
कविता के नीचे उसने श्याम की जगह सागर लिखा था। गीता ने उसे देखा और कागज श्याम की तरफ बढ़ा दिया। श्याम ने कहा कि मैं चाहता हूँ कि आप इसे टाइप कर दें। इसे छपने के लिए भेजना है। गीता कुछ नहीं बोली। कागज क
गीता ।अच्छा नाम है। लेकिन मुझे इस नाम से नफरत है।क्यों? कोई एक कारण हो तो बताएँ। यह कहते हुए गीता अपनी सीट से उठी और पर्स कंधे पर टाँगते हुए केबिन से बाहर निकल गई। श्याम उसे जाते हुए देखता र
टाइपिंग कोचिंग सेंटर में श्याम का पहला दिन था। वह अपनी सीट पर बैठा टाइप सीखने के लिए नियमावली पुस्तिका पढ़ रहा था। तभी उसकी निगाह अपने केबिन के गेट की तरफ गई। कजरारे नयनों वाली एक साँवली लड़की उसकी के
कन्नू बचपन से ही बहुत होनहार लड़की थी। भाई बहनों में सबसे छोटी और सबकी लाडली थी। ग्रेजुएशन की परीक्षा अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण करने के बाद उसे आर्मी में जाने का अवसर मिला। आज ही उसका आर्मी से कॉल लेटर
किसी गांव में एक गड़रिया रहता था। वह लालची स्वभाव का था, हमेशा यही सोचा करता था कि किस प्रकार वह गांव में सबसे अमीर हो जाये। उसके पास कुछ बकरियां और उनके बच्चे थे। जो उसकी जीविका के साधन थे।एक बार वह ग
ठण्ड का मौसम था. शीतलहर पूरे राज्य में बह रही थी. कड़ाके की ठण्ड में भी उस दिन राजा सदा की तरह अपनी प्रजा का हाल जानने भ्रमण पर निकला था. महल वापस आने पर उसने देखा कि महल के मुख्य द्वा
बात उस समय की है, जब स्वामी विवेकानंद अपने लोकप्रिय शिकागो धर्म सम्मेलन के भाषण के बाद भारत वापस आ गये थे। अब उनकी चर्चा विश्व के ह
एक संत को एक नाविक रोज इस पार से उस पार ले जाता था, बदले मैं कुछ नहीं लेता था, वैसे भी संत के पास पैसा कहां होता था,🌹 🌹नाविक सरल स्वभाव का था, पढालिखा तो था नहीं, पर वह बहुत समझदार
ज़िंदगी के इस सफर में,मुझे चलते ही जाना है।लाख आये मुश्किलें पर,आगे बढ़ते ही जाना है।सूरज की प्रचंड किरनों में,तप कर ज्वाला जैसा बनना है।चन्दा कि शीतल चांदनी बनकर,आसमान मे जगमगाना है।फूलों की महकती खुश्
आखिर देबू ने घर से भागने की ठान ली। वह आधी रात को भारी मन से चुपके से उठा और एक थैले में मैले-कुचैले कपड़े-लत्ते ठूंस-ठांसकर घर से चल पड़ा। सूनसान रात, गांव की गलियों में पसरा गहन अंधकार। अंधकार जैसे
अपना गांव अपना देश " तुम भारत क्यों जाना चाहती हो उस देश में क्या रखा है स्वार्थ, बेईमानी,लालच, विश्वासघात के अलावा वहां कुछ नहीं है वहां आज भी लड़कियों को उतनी स्वतंत्रता न
"काॅपी, किताब, पेपर की रद्दी बेचो" "लोहा, प्लास्टिक, टीन-टप्पर बेचो" "टूटा, फूटा सामान बेचो" "कबाड़ा बेचो ...... विनीता ने जैसे ही आवाज सुनी वह अपना काम छोड़कर दरवाजा खोलकर बाहर आई और गली में इधर उधर न
षष्ठम शक्ति कात्यायनीयह दुर्गा, देवताओं के और ऋषियों के कार्यों को सिद्ध करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुई ।और महर्षि ने उन्हें अपनी कन्या के रूप में पाला साक्षात दुर्गा स्वरूप इस छठी दे