कोरोना की विकरालता तो
कुछ कम हुई है, जिसे देखकर अभी तो ऐसा प्रतीत होता है कि बहुत शीघ्र इस कष्ट
से संसार को मुक्ति प्राप्त होगी... किन्तु अभी बहुत लम्बा मार्ग तय करना है जीवन
को पुनः सामान्य स्थिति में लाने के लिए... जो घाव इस बीमारी ने दिए उन्हें भरने
में वास्तव में बहुत समय लगेगा... किन्तु
साथ ही हम एक बात भी सोचते हैं कि आत्मा तो सदा आनन्द में मग्न रहती है... शाश्वत
है... सत्य है... इसलिए वह शीघ्र ही सामान्य स्थिति में आ जाएगी... क्योंकि मनुष्य शरीर
नहीं है... आत्मा है... जिसकी कोई सीमा नहीं बाँधी जा सकती... जिसका कभी नाश नहीं
होता... जो होती है पूर्णकाम... तो इसी प्रकार के उलझे सुलझे से भावों को लिए हुए प्रस्तुत
है हमारी रचना “मैं तो हूँ शाश्वत सत्य सदा...” कात्यायनी...