मंगलकवचम् – Mangala Kavacham
मंगल की बात करें तो स्वाभाविक उग्रता तथा दृढ़ता लिए हुए मंगल ग्रह को साहस, वीरता, पराक्रम और शक्ति का कारक होने के साथ ही देवताओं का सेनापति भी माना जाता है | निश्चित रूप से पराक्रम, साहस, वीरता आदि के लिए स्वभाव में कुछ उग्रता और दृढ़ता तो आवश्यक है | यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में यह शुभ स्थिति या प्रभाव में है तो मनुष्य के पराक्रम में वृद्धि के साथ ही उसे नेतृत्त्व क्षमता भी प्रदान करता है और उसे दृढ़संकल्प भी बनाता है | किन्तु यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में यह अशुभ स्थिति में अथवा अशुभ प्रभाव में है तो अनेक प्रकार के कष्ट, विरोध में वृद्धि, हानि, अनेक प्रकार के रक्त सम्बन्धी विकार, उच्च रक्तचाप, पित्तदोष आदि का कारण भी बन सकता है तथा चोट आदि लगने पर अधिक रक्तस्राव आदि का कारण भी बन सकता है | जातक को क्रोधी भी बनाता है | अस्त्र शस्त्र का कारक भी मंगल को माना जाता है |
मंगल ग्रह के दुष्प्रभाव को कम करने तथा इसे प्रसन्न करने के लिए Vedic Astrologer अनेक मन्त्रों और स्तुतियों के जाप का विधान बताते हैं | प्रस्तुत है उन्हीं में से एक “मंगलकवचम्…” यह कवच काश्यप ऋषि द्वारा रचित है तथा इसे श्रीमार्कण्डेय पुराण का विषय माना जाता है…
अस्य श्री मंगलकवचस्तोत्रमन्त्रस्य काश्यप ऋषि:, अनुष्टुप् छन्दः, अङ्गारको देवता, भौम पीडापरिहारार्थं जपे विनियोगः |
ध्यानम्
रक्ताम्बरो रक्तवपुः किरीटी चतुर्भुजो मेषगमो गदाभृत् |
धरासुतः शक्तिधरश्च शूली सदा मम स्याद्वरदः प्रशान्त: ||
अथ मंगलकवचम्
अंगारकः शिरो रक्षेन्मुखं वै धरणीसुतः |
श्रवौ रक्ताम्बर: पातु नेत्रे मे रक्तलोचनः ||
नासां शक्तिधरः पातु मुखं मे रक्तलोचनः |
भुजौ मे रक्तमाली च हस्तौ शक्तिधरस्तथा ||
वक्षः पातु वरांगश्च हृदयं पातु लोहितः |
कटिं मे ग्रहराजश्च मुखं चैव धरासुतः ||
जानुजंघे कुजः पातु पादौ भक्तप्रियः सदा |
सर्वण्यन्यानि चांगानि रक्षेन्मे मेषवाहनः ||
फलश्रुतिः
य इदं कवचं दिव्यं सर्वशत्रु निवारणम् |
भूतप्रेतपिशाचानां नाशनं सर्व सिद्धिदम् ||
सर्वरोगहरं चैव सर्वसम्पत्प्रदं शुभम् |
भुक्तिमुक्तिप्रदं नृणां सर्वसौभाग्यवर्धनम् ||
रोगबन्धविमोक्षं च सत्यमेतन्न संशयः ||
|| इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे मंगलकवचं सम्पूर्णम् ||
मंगलकर्ता मंगल सबका मंगल करे यही कामना है…