मानसिक रूप से
स्वस्थ समाज बनाएँ
आज सुबह साढ़े पाँच बजे निर्भया के गुनाहगार
दरिन्दों को फाँसी पर लटका दिया गया | निर्भया को न्याय दिलाने के लिए जिन लोगों
ने भी एड़ी चोटी का जोर लगाया वे सभी बधाई के पात्र हैं | साथ ही समूचे देश की ही
नहीं विश्व की भी निगाहें इस ओर लगी हुई थीं कि क़ानून का मखौल उड़ाकर बार बार अपनी
फाँसी रुकवाने की का प्रयास करने वाले इन दरिन्दों को फाँसी होगी भी या नहीं, तो आज सभी ने राहत की साँस ली है | सम्भव है इससे लोगों के मन में इस
प्रकार के अपराधों के प्रति डर पैदा हो और इस तरह के अपराधों में कमी आए |
लेकिन ये सज़ा कुछ प्रश्न भी पीछे छोड़कर गई है |
जिनमें सबसे ज्वलन्त प्रश्न यही है कि आख़िर ये स्थिति आई ही क्यों ? अक्सर किसी न
किसी कार्यक्रम में लड़कियों से भी बात करने का अवसर प्राप्त होता है | पिछले काफी
समय से निर्भया काण्ड से सम्बन्धित ही बातें हो रही थीं | कई लड़कियों ने कहा कि डॉ
साहब यदि हमें काम से घर वापस लौटने में ज़रा भी देर हो जाती है तो हमारे घरवाले
बेचैन हो जाते हैं और बार बार फोन करके पूछते रहते हैं कहाँ पहुँची हो, जबकि हमने सेल्फ डिफेन्स की ट्रेनिंग भी ली हुई है | हमारे पूछने पर वे
कहती हैं कि सेल्फ डिफेन्स की ट्रेनिंग के बाद भी डर लगने का कारण यही है कि समाज में अभी भी ऐसे वहशी दरिन्दे खुले घूम रहे हैं जिनके लिए औरत का जिस्म
बस उधेड़े जाने के लिए ही बना है | इन दरिन्दों पर अपराध
करते समय इस तरह की हैवानियत चढ़ी होती है कि उसके सामने कोई मार्शल आर्ट या सेल्फ
डिफेन्स की तकनीक काम नहीं करती | हालत ये है कि ऐसे
भेड़िये दुधमुंही बच्चियों तक को नहीं छोड़ते | लड़कियाँ आजकल बड़े बड़े काम कर रही हैं,
कहाँ कहाँ तक डर कर रहेंगी ? और ये निर्भया के साथ या हैदराबाद की डॉक्टर के साथ
हुई दरिंदगी अकेली घटनाएँ नहीं है | बहुत से केस रिकॉर्ड में दर्ज़ हो जाते हैं तो
बहुत से लोग पुलिस में इस तरह की हैवानियत की रिपोर्ट ही नहीं करते समाज में
बदनामी के डर से और इस डर से कि कल को बेटी के साथ शादी कौन करेगा |
लेकिन इस सबके लिए क्या हमारा समाज भी बहुत हद तक ज़िम्मेदार नहीं है ? आख़िर कब तक देश
की आधी आबादी से पूछा जाता रहेगा कि देर रात तक घर से बाहर क्यों रहती हो ? कब तक
उन्हें उनके कपड़ों के लिए टोका जाता रहेगा ? कब तक उनसे सवाल किये जाते रहेंगे कि
उन्होंने मेकअप क्यों किया है ? हँसती बतियाती क्यों हैं ?
इतनी पढ़ लिख कैसे गईं, क्या मर्दों की बराबरी
करनी है ? कब तक उन्हें उलाहना दिया जाता रहेगा कि क्यों
नहीं तुम्हारे वक़्त में तुम्हारी माँ ने अबॉर्शन करा दिया - न तुम पैदा होतीं न
तुम्हारी इज़्ज़त से कोई खिलवाड़ ही करता ?
इस समस्या के
निदान के लिए हमें पहल अपने घरों से ही करनी होगी | बहुत से परिवारों में बेटे
बचपन से देखते आते हैं कि उनका पिता उनकी माँ को केवल भोग्या समझता है | होम
मेकर्स की तो बात छोड़िये, पत्नी यदि नौकरी भी कर रही है तब भी उसे अपने कमाई का एक एक पैसे का
हिसाब पति को देना पड़ता है कई परिवारों में | अपने आप कोई निर्णय नहीं लेने की छूट
उसे नहीं होती – पति ही सारे निर्णय लेगा | घर में सास बहू के झगड़ों में पिटाई बहू
की होती है – क्योंकि पत्नीरूपा स्त्री तो पाँव की जूती है |
उधर महिला भी कम
दोषी नहीं है | पति के अत्याचार झेलती महिला अपनी बेटी पर भड़ास निकालती बोलती है
कि जल्दी तेरी शादी करा दूँगी फिर ज़िन्दगी भर रसोई में बर्तन साफ़ करती रहना | और
अत्याचार झेलने वाली महिला ही नहीं, जिन महिलाओं को परिवार में पूरे सम्मान के साथ
रखा जाता है, कुछ भी करने की पूरी छूट होती है और पढ़ी लिखी भी हैं उन महिलाओं का
भी बहुतायत में यही हाल है | हमारे परिचय में भी ऐसी महिलाएँ हैं | महिलाएँ केवल
किटी पार्टी में जाकर ही अपने आपको अहोभाग्य समझ लेती हैं | यहाँ तक कि बेटी को
अगर घर से बाहर जाना है तो अपने भाई के साथ जाएगी – भले ही वह उससे दस बरस छोटा ही
क्यों न हो |
ऊपर से समस्या ये
है कि आजकल छोटी उम्र में लड़के नशे की आदत डाल लेते हैं | घरों में बेटे बेटियों
में भेद भाव होता देखते हैं, अपने पिता को अपनी माँ को दुत्कारते हुए देखते हैं, तो नशे की हालत में अपने आपको
शेर समझने लगते हैं | जहाँ दो पैग हलक से नीचे उतरे कि खुद को मर्द साबित करने की
जैसे होड़ सी लग जाती है | भूल जाते हैं ये लड़के उस वक़्त सारा आगा पीछा कि सबके चक्कर
में अगर उन्हें कुछ हो गया तो उनके परिवारों का क्या होगा | न उस समय माँ बाप याद
आते हैं, न इतना ही ध्यान रहता है कि उनके जेल जाने के बाद
उनकी बहनों के साथ ब्याह कौन करेगा ? एक रेपिस्ट की, मर्डरर
की बहन कहलाएगी वो | और लड़की ने अगर थोड़ी समझदारी दिखाने की कोशिश की तो उसे ज़िंदा
जलाने से भी बाज़ नहीं आते, ताकि उनकी हैवानियत के सारे प्रूफ
भी उसके साथ जल जाएँ | अगर कभी पकडे भी गए और अपना जुर्म क़बूल कर भी लिया तो कोर्ट
में उनके वकील बोल देते हैं कि ये तो नाबालिग हैं, इन्हें
फँसाया गया है, ये तो वहाँ गए थे बस उस जलती हुई लड़की को
बचाने के लिए इसलिए इनकी घड़ी या मोबाइल वहाँ छूट गया होगा | क्योंकि सबूत तो कोई
होगा नहीं, न ही कोई गवाह होगा... और ये सब सिखाने वाले हैं कुछ पैसे के लालची
वक़ील...
बहरहाल, क़ानूनी ढाँचा अपना काम करता रहेगा, वो क़ानून के जानकारों
का विषय है | हमें अपने घरों में बेटों को संस्कारवान बनाने की आवश्यकता है | और इसके लिए मातृ शक्ति को ही प्रयास करना होगा | बेटी को पढ़ाने के साथ
ही बेटों को महिलाओं की इज़्ज़त करना माताएँ ही सिखा सकती हैं | जब तक लड़के अपने पिता को उनकी पत्नी यानी बेटों की माँ का सम्मान करते
नहीं देखेंगे, जब तक गर्भ में पल रही बच्चियों को मारना बन्द
नहीं होगा, जब तक घरों में बेटे बेटी का भेद ख़त्म नहीं होगा
तब तक लड़के संस्कारवान नहीं बन सकते | साथ ही लड़कों को पहले स्कूली स्तर पर और फिर
कॉलेजेज़ में ये बताया जाना बेहद ज़रूरी है कि बलात्कार और मर्डर जैसे अपराधों में
क्या सज़ा मिल सकती है, ताकि उनके मन में क़ानून का डर पैदा हो
|
और आख़िरी लेकिन सबसे अहम दूसरी बात ये कि बेटियों को हर स्तर पर आत्मनिर्भर
और निडर बनाया जाए | उन्हें सबसे पहले तो पढ़ा लिखा कर आत्मनिर्भर बनाइये,
बजाए इसके कि उनके सामने रात दिन बस उनकी शादी की चिन्ता करें | दूसरे ये कि हर लड़की के लिए सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग ज़रूरी होनी चाहिए | स्कूली स्तर पर ही इसे कम्पलसरी कर देना चाहिए | आज
लड़कियों को छुई मुई सी राजकुमारी बनाने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि आवश्यकता है उनको दुर्गा के रूप में ढालने की ताकि लड़के किसी भी
बदनीयती के साथ आगे बढ़ने से पहले दस बार सोचें |
हमें एक ऐसे समाज का निर्माण करना होगा जहाँ पति अपनी पत्नी का, भाई अपनी
बहन का, और परिवार की महिलाएँ परस्पर एक दूसरे का सम्मान
करती हों और एक दूसरे के साथ प्रेम से रहते हों | ऐसा समाज जब बन जाएगा तो न इस
तरह के घिनौने अपराध होंगे न ही इस तरह की सजाओं की नौबत आएगी | क्योंकि सज़ा तो
आखरी पड़ाव होता है, शुरुआत होती है किसी भी दुष्कर्म रूपी बीमारी
को रोकने का प्रयास करने के साथ...
अन्त में हमारा मानना है कि...
न मारो न पीटो, न नफ़रत से देखो
न बन जाएँ बेटे कहीं भेड़िये |
न सर पे भी इतना चढ़ाओ इन्हें
न बन जाएँ बेटे कहीं भेड़िये ||
बेटी से कहते हो बन घर की इज़्ज़त
तो बेटों को क्यों छूट देते हो इतनी |
कि अपनी ही माँ और बहनों की इज़्ज़त
कर दें ये तार बनके वहशी दरिन्दे ||
क्यों हर बात पर करते बिटिया को ही चुप
जबकि करते हैं ये घर की इज़्ज़त में डण्डे |
किसी की तो भाभी बहन होगी वो भी
सपने भी आँखों में पाले तो होंगे |
नहीं कोई हक़ इनको तोड़ें वो सपने
सिखाओ इन्हें घर की इज़्ज़त को समझें ||
जो घर की तुम्हारे बनी शान देखो
वही तो किसी और घर का भी गौरव |
समझाओ बेटों को सिखलाओ इनको
कुछ इंसानियत की दवा डालो इनमें |
कि वहशी दरिन्दे कहीं बन न जाएँ
के बेटे कहीं भेड़िये बन न जाएँ ||