भरणी
वैदिक ज्योतिष के आधार पर मुहूर्त, पञ्चांग, प्रश्न इत्यादि के विचार के लिए प्रमुखता से प्रयोग में आने वाले “नक्षत्रों की व्युत्पत्ति और उनके नामों” पर वार्ता के क्रम में अश्विनी नक्षत्र के बाद अब दूसरा नक्षत्र होता है भरणी | भरणी शब्द की व्युत्पत्ति हुई है भरण में ङीप् प्रत्यय लगाकर हुई है | भरण का शाब्दिक अर्थ है पालन पोषण करना, भार वहन करना आदि | इस नक्षत्र में भी अश्विनी नक्षत्र के समान ही तीन तारे होते हैं तथा यह भी आश्विन माह तथा सितम्बर और अक्टूबर के महीनों में पड़ता है |
जो व्यक्ति अपने आस पास के लोगों तथा अन्य प्राणियों की देख भाल करता हो, उनका ध्यान रखता हो, पालन पोषण करता हो उसे भरण करने वाला कहा जाता है | अपने स्वयं के सामान की देखभाल करना भी इसका स्वभाव होता है | इसके अतिरिक्त ऐसे मजदूर को भी भरण करने वाला कहते हैं जो भार ढोता हो – अपने सर पर कुछ सामान रखकर यहाँ से वहाँ पहुँचाता हो | कुली के अर्थ में भी इस शब्द का प्रयोग होता है | राहु का विशेषण भी इसे माना जाता है |
भरणी नक्षत्र के अन्य नाम हैं : अन्तक – किसी भी वस्तु, वातावरण अथवा समस्या का अन्त करने वाला अथवा किसी भी कार्य को या वार्तालाप को या विवाद इत्यादि को उसके अन्त तक या पूर्णता तक पहुँचाने वाला या नष्ट करने वाला | सीमा के अर्थ में भी भरणी शब्द का प्रयोग किया जाता है | इसके अतिरिक्त यम अर्थात युगल यानी Twin के अर्थ में भी इसका प्रयोग होता है | साथ ही किसी बात के लिए रोकना, नियन्त्रित करना, बाधा डालना, आत्म नियन्त्रण यानी Self-Control तथा महान नैतिक – धार्मिक – आध्यात्मिक कर्तव्यों का निर्वाह करना तथा रीति रिवाजों का पालन करने के अर्थ में भी इस शब्द का प्रयोग किया जाता है |
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