नक्षत्रों की योनियाँ
पिछले लेख में हमने
नक्षत्रों की नाड़ियों पर बात की थी | सारे 27 नक्षत्र आद्या, मध्या और
अन्त्या इन तीन नाड़ियों में विभक्त होते हैं और प्रत्येक नाड़ी में नौ नक्षत्र होते
हैं | नाड़ियों के साथ साथ योनियों में भी नक्षत्रों का वर्गीकरण होता है |
प्रत्येक नक्षत्र एक विशेष योनि से सम्बन्ध रखता है अथवा एक विशेष योनि का
प्रतिनिधित्व करता है | योनि शब्द का चिर परिचत अर्थ है गर्भाशय, उत्पत्ति का कारक
तथा जन्म का वास्तविक स्थान | इसके अतिरिक्त किसी वर्ग विशेष या मनुष्यों की किसी
विशिष्ट प्रजाति के लिए भी योनि शब्द का प्रयोग होता है | विवाह के लिए कुण्डली मिलान करते समय अष्टकूट गुणों
का मिलान करते हुए नाड़ी दोष की ही भाँती योनि भी मिलाकर देखी जाती हैं | वर वधू
दोनों की योनि या तो एक होनी चाहियें या
फिर एक दूसरे के लिए अनुकूल होनी चाहियें | इसका कारण यह है कि योनि से मनुष्य के
स्वभाव का भी कुछ भान हो जाता है | इसलिए माना जाता है कि अनुकूल या एक ही योनि रहने
पर दोनों पक्षों के मध्य अनुकूलता बनी रह सकती है, वहीं यदि एक दूसरे से शत्रु
योनि होगी तो परस्पर क्लेश रह सकता है | इस सबके पीछे मान्यता यही है कि संसार का
प्रत्येक जीव किसी न किसी योनि से सम्बन्ध रखता है | किन्तु इस सबके विषय में
विस्तार से चर्चा “विवाह” प्रकरण में करेंगे | अभी तो नक्षत्रों का योनियों में
वर्गीकरण…
जैसा कि ऊपर लिख चुके हैं, ज्योतिषीय गणना
के आधार पर 14 योनियों में अभिजित
सहित 28 नक्षत्रों को विभाजित किया गया है, जो
निम्नवत है:
अश्व योनि : अश्व अर्थात घोड़ा | भगवान सूर्य के रथ में साथ घोड़े लगे होने
के कारण अश्व शब्द सात के अंक का भी पर्यायवाची माना जाता है | अश्विनी और शतभिषज
नक्षत्र इस योनि के अन्तर्गत आते हैं |
गज योनि : गज अर्थात हाथी | किसी वस्तु की लम्बाई की माप | आठ के अंक का
भी पर्यायवाची गज को माना जाता है | साथ ही एक राक्षस का नाम भी गज है जिसका वध
भगवान शिव ने किया था | इस योनि के अन्तर्गत भरणी और रेवती नक्षत्र आते हैं |
मेष योनि : मेष अर्थात भेड़ | इस योनि के अन्तर्गत पुष्य और कृत्तिका
नक्षत्रों को रखा गया है |
सर्प योनि : सर्प अर्थात साँप, धीरे धीरे सरकने वाला, बहता हुआ, आगे बढ़ता हुआ, लहराता हुआ, टेढ़ा
मेढ़ा बलखाता हुआ आदि अर्थों में सर्प शब्द का प्रयोग होता है | वृक्ष को भी सर्प
कहा जाता है | प्राचीन काल की एक जनजाति भी सर्प कहलाती थी | रोहिणी और मृगशिरा
नक्षत्र इस योनि के अन्तर्गत आते हैं |
श्वान योनि : कुत्ते को श्वान कहा जाता है | मूल और आर्द्रा नक्षत्र इस
योनि का प्रतिनिधित्व करते हैं |
मार्जार योनि : मार्जार अर्थात बिल्ली | आश्लेषा और पुनर्वसु नक्षत्र इस
योनि में आते हैं |
मूषक योनि : मूषक – चूहा | चोर के लिए भी मूषक शब्द का प्रयोग किया जाता
है | इस योनि के अन्तर्गत मघा और पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र आते हैं |
गौ योनि : गौ – गाय | गौ शब्द के अर्थ बहुत विस्तृत हैं | समस्त पशुओं के
लिए भी गौ शब्द का प्रयोग किया जाता है | आकाश में चमकते तारकदल को भी गौ कहा जाता
है | इसके अतिरिक्त आकाश, इन्द्र का विद्युत्पाश, आकाश में चमकती बिजली, प्रकाश की किरण, हीरा पत्थर, स्वर्गलोक, बाण आदि के लिए भी गौ शब्द का प्रयोग किया जाता है | वाणी और शब्दों को
भी गौ कहते हैं | माता के लिए गौ शब्द का प्रयोग सर्वविदित ही है | दिक्सूचक
यन्त्र यानी Compass के लिए भी गौ कहा जाता है | जल तथा आँखों के लिए भी यह शब्द
प्रयुक्त होता है | उत्तर फाल्गुनी और उत्तर भाद्रपद नक्षत्र इस योनि में रखे गए
हैं |
महिष योनि : महिष अर्थात भैंस या भैंसा | महिष यानी भैंसे को धर्म तथा
सन्तुलन के प्रतीक यमराज का वाहन भी माना जाता है | अत्यन्त धनाढ्य नरेश – जो कि
बहुत से नरेशों का स्वामी हो – को भी महिष कहा जाता है | महिष एक आदरसूचक शब्द भी
है जो किसी भी अपने से बड़े व्यक्ति अथवा सम्माननीय व्यक्तियों के लिए प्रयुक्त
होता है | एक राक्षस का नाम भी महिष था जिसका संहार माँ दुर्गा ने किया था | महिष
योनि में स्वाति और हस्त नक्षत्रों को रखा गया है |
व्याघ्र : व्याघ्र यानी सिंह | आदरसूचक शब्द भी है व्याघ्र, जो सर्वोत्तम
अथवा सबसे अधिक सम्माननीय व्यक्ति के लिए प्रयोग किया जाता है | परिवार अथवा समाज
अथवा राष्ट्र का मुखिया भी व्याघ्र कहलाता है | लाल रंग का अरण्डी का पौधा यानी
Castor Oil Plant भी व्याघ्र कहलाता है | विशाखा और चित्रा नक्षत्र इस योनि में
आते हैं |
मृग योनि : सामान्य रूप से किसी भी पशु के लिए मृग शब्द का प्रयोह किया
जाता है, किन्तु विशेष रूप से हिरण को मृग कहा जाता है | जंगली जानवर और चन्द्रमा
पर दीख पड़ने वाले काले धब्बे के लिए भी मृग शब्द का प्रयोग किया जाता है | अनुसरण
करना, प्रयास करना, खोज करना, शिकार करना, परीक्षण करना आदि अर्थों में भी मृग शब्द का बहुतायत से प्रयोग किया जाता
है | एक विशेष प्रकार के हाथी को भी मृग कहा जाता है | व्यक्तियों का एक विशिष्ट
वर्ग तथा एक प्राचीनकालीन जनजाति भी मृग कहलाती है | ज्येष्ठा और अनुराधा नक्षत्र
इस योनि के अन्तर्गत आते हैं |
वानर योनि : नाम से ही स्पष्ट है – बन्दर | बन्दरों से सम्बन्धित समस्त
प्रजातियाँ जैसे भालू, Chimpanzee, रीछ आदि भी वानर ही कहलाते हैं | रक्त-श्वेत पुष्पों से
युक्त लोध्र वृक्ष को भी वनार की संज्ञा दी जाती है | पूर्वाषाढ़ और श्रवण
नक्षत्रों को इस योनि के अन्तर्गत रखा गया है |
नकुल योनि : नकुल यानी नेवला | पुत्र के लिए तथा छोटे व्यक्ति या भाई के
लिए भी नकुल शब्द का प्रयोग किया जाता है | इस योनि के अन्तर्गत आने वाले नक्षत्रों
के नाम हैं उत्तराषाढ़ और अभिजित |
सिंह योनि : सर्वविदित अर्थ है – शेर | हिंसा शब्द से सिंह शब्द निरूपित
हुआ है – जिसका अर्थ ही है किसी को मारना | इसके अतिरिक्त सबसे उत्तम वस्तु या
व्यक्ति आदि के लिए तथा समाज के विशिष्ट रूप से सम्मानित वर्ग के लिए भी सिंह शब्द
का प्रयोग होता है | पूर्वा भाद्रपद और धनिष्ठा नक्षत्र इस योनि में आते हैं |
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