आज काफी दिनों के बाद शब्दनगरी के लेखों पर
गई तो डॉ दिनेश शर्मा के कुछ और यात्रा संस्मरण देखे... आइये हम भी उनके साथ कुछ
यात्राएं कर लें...
नशा माटो के शराबखाने का
समुद्र
के किनारे चलते चलते रास्ते में एक शान्त सी दूकान देखी तो कुछ पीने और सुस्ताने
के इरादे से उसमें ही घुस गया | यह दरअसल एक शराब खाना था जो मुख्य टूरिस्ट मार्ग पर न होने की वजह
से इस समय वीरान था | अन्दर रेड और व्हाईट वाइन के कांच के बड़े बड़े जार थे, लकड़ी के बड़े बड़े गोल हौद थे जिनमें वाइन बनने से पहले अंगूर फर्मेंट हो
रहे थे | एक तरफ लकड़ी के ऊँचे ऊँचे बोतल रैक थे जिनमें सालों के हिसाब से वाइन की
बोतलें लिटाकर जमाई गई थीं | मुझ जैसा प्रौढ़ावस्था का अकेला हिन्दुस्तानी सैलानी
क्योंकि टूरिस्ट्स के किसी भी वर्ग में आराम से फिट नहीं होता तो लोगों की –
ख़ासतौर पर रेस्टोरेंट होटल या दुकानों के मालिक की जिज्ञासा का आसानी से पात्र बन
जाता है...
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