
आज की नफ़रत की राजनीति पर डॉ दिनेश शर्मा की एक सकारात्मक सोच... सच में, कहीं न कहीं तो इस नकारात्मक नफरती माहौल को बदलना होगा...
वरना इसका जो अंजाम होगा उसे सोचकर वाक़ई रूह काँप उठती है...
कुछ और आग लगाओ - दिनेश डॉक्टर
बदकिस्मती से कुछ
दिनों से फिर वैसे ही हिन्दू मुस्लिम वाले खतरनाक मैसेज आने शुरू हो गए थे | एक को ब्लॉक करो- दूसरा भेज देता
था | उसको ब्लॉक करो कोई तीसरा भेज देता था | मुझे पूरा यकीन है कि वैसे ही झूठ फैलाने वाले नफरत भरे मैसेज मुसलमानों
के ग्रुप्स में भी भेजे जा रहे थे | कौन लोग थे ये ? भारतीय तो हो नहीं सकते | हिन्दू हो सकते है,
मुसलमान हो सकते है, हो सकता है अमरीकी,
रूसी, चाइनीज या पाकिस्तानी हों | भारतीय या हिंदुस्तानी तो बिल्कुल नहीं हो सकते |
भारतीय होते तो ज़रूर सोचते कि अगर इस मुल्क के लोग मजहब या सियासत की वजह से नफरती
जुनून में आपस में लड़ेंगे तो किस हद की अफरातफरी, कत्लेआम और
विनाश होगा ! कितने लोग कपड़ों, दाढ़ी, चोटी
या जनेऊ की वजह से मरेंगे !! कितने घरों में आग लगा कर लूटे जाएंगे ! कितनी
बच्चियों बहनों और औरतों का बलात्कार होगा ! कितनी बसें जलेंगी ! कितनी पटरियां
उखड़ेंगी ! इंटरनेट बन्द हो जाएगा ! बिजली पानी राशन का अकाल होगा !
कभी सोचा है -
आधा घंटे को बिजली चली जाए तो हज़ारों फोन खड़क जाते है | नल में एक घंटा पानी न आये तो
आसमान सर पर उठा लिया जाता है | सड़क पर कुछ देर जाम लग जाए
तो दिमाग का पारा उबलने लगता है | बच्चों को घर लौटने में
थोड़ी देर हो जाए तो दस्त लग जाते है और धड़कने बढ़ जाती है |
जिन मुल्कों में
राजनीतिक, जातीय या धार्मिक
संघर्ष हुए है - वहां का इतिहास भी पढ़ लेते | ये ऐसी जंगल की
आग है जो बुझाए नहीं बुझती और वश से बाहर हो जाती है | क्या
इस तरह के नफरत भरे, झूठे और गैरजिम्मेदार मैसेज फॉरवर्ड
करने वाले इस देश को यूगोस्लाविया बनाना चाहते है जो कई टुकड़ों में बंटने से पहले
सालों मौत और बर्बादी की दहशत के मंजर का गवाह बना |
कुछ घंटों की
तकलीफ लोगों से बरदाश्त नहीं होती | कौन है वे लोग जो इस मुल्क के नागरिकों को
बरसों तकलीफ में डालकर इसकी बर्बादी की साजिश कर रहे थे और हैं? जिन्हें आम लोगों की जेबों में पैसा, स्कूल में पढ़ते
बच्चे, सुकून की ज़िंदगी, हर हाथ में
मोबाइल और अपने जीवन को कड़ी मेहनत और संघर्ष करके सुधारते लोग, बच्चों को चैन से पालती माँएँ, कालेज जाती नौजवान
पीढ़ी बर्दाश्त नहीं हो रही थी और है | होगा क्या ? दस बीस पचास हज़ार लोग मरेंगे - लाखों बर्बाद होंगे |
रहना तो फिर भी इसी देश में पड़ेगा पर हर तरफ नफरत की खाइयां और चौड़ी हो जाएंगी | दिलों में दरारें और गहरी हो जाएंगी | और जिस गंगा
जमुनी तहजीब की बातें होती है उन्हीं गंगा जमुना के प्रदूषित जल में सालों तक
लाशें तैरेंगी और खून बहेगा | यह मुल्क न तो सदियों पुरानी 'ग़ज़वाये हिन्द' की कबीलाई सोच का निशाना है और न ही
इस देश के बाशिंदों में किसी खालिस पूजा पाठ करने वाले हिन्दू राष्ट्र का DNA
मौजूद है |
अगर मेरी बात समझ
नहीं आती तो ठीक है फिर ! कर दो बर्बाद इस मुल्क की शांति को उन मुल्कों की तरह
जहां बरसों से लोगों को चैन की नींद नसीब नहीं हुई, चेहरों पर भोली मुस्कराहटें नहीं खेली और मौत
का साया कभी दूर नहीं हटा | मैं एक बार फिर उन भोले और नासमझ
दोस्तों से दरख्वास्त करूंगा कि सोशल मीडिया पर हर पोस्ट को फॉरवर्ड करने से पहले
जांच लीजिए कि उसका मकसद क्या है ! वो पोस्ट कहीं आपको कट्टर हिन्दू, कट्टर मुसलमान बना कर इस देश को बरबाद करने में औज़ार तो नहीं बनाना चाहती ?
यार समझो ! कुछ
लोग हज़ारों मील दूर बैठे बैठे सारा सोचा समझा नफरतों का सच दिखने वाला बेहद झूठा
खतरनाक खेल - खेल रहें है और हम दिमाग को ताक पर रक्खे इस मजहबी और सियासी साजिश
के शिकार हो रहे हैं, उनकी बेसिर पैर की झूठी पोस्ट्स को बेवकूफ बन कर बिना सोचे समझे फॉरवर्ड
किये जा रहे है | सब कुछ लुटा के होश में आये तो क्या किया ?
मेरे हमवतनों अभी भी मौक़ा है सम्भल जाओ | दिल
को छुए तो इस पोस्ट को सब लोगों से शेयर करो |
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