Navagraha Stotram
हिन्दू समाज में किसी भी मंगलकार्य अथवा धार्मिक अनुष्ठान के समय नवग्रहों के आह्वाहन और स्थापन की प्रथा है | इसी निमित्त प्रस्तुत है नवग्रह स्तोत्रम्…
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महद्युतिं |
तमोSरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोSस्मि दिवाकरं ||
जपा कुसुम के समान आभा से युक्त, काश्यपेय (कश्यप तथा अदिति के पुत्र), महान तेजसम्पन्न, अन्धकार तथा समस्त पापों को नष्ट करने वाले भगवान दिवाकर को हम नमन करते हैं |
दधिशंख तुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम् |
नमामि शशिनं सोंमं शंभोर्मुकुट भूषणम् ||
दधि, शंख तथा तुषार की आभा से युक्त, क्षीरसागर से उत्पन्न तथा भगवान् शंकर के मुकुट के भूषण चन्द्रमा को हमारा नमस्कार है |
धरणीगर्भ सम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम् |
कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम् ||
धरणी के गर्भ से उत्पन्न, विद्युत्पुन्ज के समान आभा से युक्त, हाथों में शक्ति धारण करने वाले, सदा कौमार्य से युक्त मंगल को हमारा प्रणाम |
प्रियंगुकलिकाश्यामं रूपेणप्रतिमं बुधम् |
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् ||
प्रियंगुकलिका के समान जिनका श्याम वर्ण है, अप्रतिम जिनका रूप है तथा जो सौम्य गुणों से युक्त हैं ऐसे बुध को हमारा प्रणाम |
देवानांच ऋषीणांच कांचनं गुरुसन्निभम् |
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् ||
देवताओं और ऋषियों के गुरु, स्वर्ण के समान आभा से युक्त, बुद्धि के अखण्ड भण्डार, तीनों लोकों के स्वामी बृहस्पति जी को हमारा प्रणाम |
हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरूम् |
सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् ||
हिम (बर्फ), कुन्द(पुष्प) तथा मृणाल (कमल) की आभा से युक्त, दैत्यों के परम गुरु, समस्त शास्त्रों के प्रवक्ता भार्गव शुक्र को हम प्रणाम करते हैं |
नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् |
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ||
नीलांजन के समान आभा से यक्त, छाया और मार्तण्ड के मिलन से उत्पन्न (अथवा सूर्य की छाया से उत्पन्न) रवि के पुत्र, यम के अग्रज शनिदेव को हमारा नमस्कार है |
अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्यविमर्दनम् |
सिंहिकागर्भसम्भूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् ||
जिनका केवल आधा शरीर है तथा जो महापराक्रमी हैं, जिन्होंने चन्द्र तथा आदित्य तक को परास्त कर दिया था तथा जो सिंहिका के गर्भ से उत्पन्न हैं ऐसे राहु को हम नमन करते हैं |
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम् |
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् ||
पलाश पुष्प के समान रक्ताभा से युक्त, समस्त तारकाओं में श्रेष्ठ महान घोररूपधारी केतु को हम नमस्कार करते हैं |
फलश्रुति :
इति व्यास मुखोद्गीतं य: पठेत् सुसमाहितम् |
दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्न शान्तिर्भविष्यति ||
नरनारीनृपाणांच भवेत् दु:स्वप्ननाशनम् |
ऐश्वर्यमतुलं तेषामारोग्यं पुष्टिवर्धनम् ||
ग्रहनक्षत्रजा पीडास्तस्कराग्नि समुद्भवा: |
ता: सर्वा: प्रशमं यान्ति व्यासोSब्रवीद्वच: ||
इति श्री व्यासविरचितम् आदित्यादिनवग्रहस्तोत्रं सम्पूर्णम् ||
व्यास द्वारा रचित ऐश्वर्य, आरोग्य तथा पुष्टि की वृद्धि करने वाले इस नवग्रह स्तोत्र का जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धाभाव से पठन अथवा श्रवण करता है उसके समस्त विघ्न शान्त होते हैं |