Shree Ganapati Dwadashnaam Stotram
श्री गणपति द्वादाशनाम स्तोत्रम्
हिन्दू धर्म में कोई भी मंगल कार्य करते समय सर्वप्रथम गणपति का आह्वाहन स्थापन करते हैं | ऐसी मान्यता है कि यदि पूर्ण एकाग्रचित्त से संकल्पयुक्त होकर गणपति की पूजा अर्चना की जाए तो उसके बहुत शुभ फल प्राप्त होते हैं | प्रायः सभी Vedic Astrologer बहुत सी समस्याओं के समाधान के लिए पार्वतीसुत गणेश की उपासना का उपाय बताते हैं | और आज तो अंगारक गणेश संकष्टचतुर्थी भी है | इसी निमित्त प्रस्तुत है “श्री गणपति द्वादशनामस्तोत्रम्”…
यहाँ हम इस स्तोत्र के दो रूप प्रस्तुत कर रहे हैं | दोनों का ही भाव यही है कि जो भी व्यक्ति श्रद्धाभक्ति पूर्वक इनका ध्यान करता है वह चारों पुरुषार्थों का पालन करते हुए समस्त पापों से मुक्त होकर सुख प्राप्त करता है… साधक अपनी सुविधानुसार किसी भी स्तोत्र का पठन अथवा श्रवण कर सकता है…
|| अथ श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम् ||
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः |
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ||
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः |
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ||
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा |
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ||
सुन्दर मुख वाले, एकदन्त, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र और गजानन – गणपति के इन बारह नामों का विद्यारम्भकाल में, विवाह के समय, प्रवेश के समय, प्रस्थान के समय, संग्राम के समय अथवा संकट के समय जो व्यक्ति पठन अथवा श्रवण करता है उसके समक्ष कभी किसी प्रकार का विघ्न नहीं उपस्थित होता |
|| अथ श्री गणेशस्तोत्रम् ||
नारद उवाच
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् |
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुःकामार्थसिद्धये ||
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं दि्वतीयकम् |
तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ||
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च |
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ||
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम् |
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ||
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः |
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ||
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् |
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ||
जपेद् गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत् |
संवत्सरेण च संसिद्धिं लभते नात्र संशयः ||
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत् |
तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ||
|| इतिश्रीनारदपुराणे संकटनाशननाम गणेशद्वादशनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ||
वक्रतुण्ड, एकदन्त, कृष्णपिंगाक्ष, गजवक्त्रं, लम्बोदर, विकट, विघ्नराज, धूम्रवर्ण, भालचन्द्र, विनायक, गणपति और गजानन – भगवान् गणेश के इन बाराह नामों का जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक पठन और श्रवण करता है उसकी समस्त कामनाएँ पूर्ण होती हैं |
इस प्रकार प्रायः इन दो प्रकार से गणपति के द्वादश नामों का पाठ किया जाता है | शिव-पार्वती सुत गणेश सभी का मंगल करें, यही कामना है…
Shree Ganapati Dwadashnaam Stotram
श्री गणपति द्वादाशनाम स्तोत्रम्
हिन्दू धर्म में कोई भी मंगल कार्य करते समय सर्वप्रथम गणपति का आह्वाहन स्थापन करते हैं | ऐसी मान्यता है कि यदि पूर्ण एकाग्रचित्त से संकल्पयुक्त होकर गणपति की पूजा अर्चना की जाए तो उसके बहुत शुभ फल प्राप्त होते हैं | प्रायः सभी Vedic Astrologer बहुत सी समस्याओं के समाधान के लिए पार्वतीसुत गणेश की उपासना का उपाय बताते हैं | और आज तो अंगारक गणेश संकष्टचतुर्थी भी है | इसी निमित्त प्रस्तुत है “श्री गणपति द्वादशनामस्तोत्रम्”…
यहाँ हम इस स्तोत्र के दो रूप प्रस्तुत कर रहे हैं | दोनों का ही भाव यही है कि जो भी व्यक्ति श्रद्धाभक्ति पूर्वक इनका ध्यान करता है वह चारों पुरुषार्थों का पालन करते हुए समस्त पापों से मुक्त होकर सुख प्राप्त करता है… साधक अपनी सुविधानुसार किसी भी स्तोत्र का पठन अथवा श्रवण कर सकता है…
|| अथ श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम् ||
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः |
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ||
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः |
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ||
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा |
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ||
सुन्दर मुख वाले, एकदन्त, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र और गजानन – गणपति के इन बारह नामों का विद्यारम्भकाल में, विवाह के समय, प्रवेश के समय, प्रस्थान के समय, संग्राम के समय अथवा संकट के समय जो व्यक्ति पठन अथवा श्रवण करता है उसके समक्ष कभी किसी प्रकार का विघ्न नहीं उपस्थित होता |
|| अथ श्री गणेशस्तोत्रम् ||
नारद उवाच
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् |
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुःकामार्थसिद्धये ||
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं दि्वतीयकम् |
तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ||
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च |
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम् ||
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम् |
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम् ||
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः |
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ||
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् |
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ||
जपेद् गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत् |
संवत्सरेण च संसिद्धिं लभते नात्र संशयः ||
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत् |
तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ||
|| इतिश्रीनारदपुराणे संकटनाशननाम गणेशद्वादशनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ||
वक्रतुण्ड, एकदन्त, कृष्णपिंगाक्ष, गजवक्त्रं, लम्बोदर, विकट, विघ्नराज, धूम्रवर्ण, भालचन्द्र, विनायक, गणपति और गजानन – भगवान् गणेश के इन बाराह नामों का जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक पठन और श्रवण करता है उसकी समस्त कामनाएँ पूर्ण होती हैं |
इस प्रकार प्रायः इन दो प्रकार से गणपति के द्वादश नामों का पाठ किया जाता है | शिव-पार्वती सुत गणेश सभी का मंगल करें, यही कामना है…