नवल प्रभात शरद
का
नमस्कार मित्रों ! शरद के प्रथम प्रभात का
सौन्दर्य – जब नवल उषा को आगे करके नवल नभ विकस उठता है... और नवल प्रकृति का नवल
सौन्दर्य लख कामदेव भी अपना सब कुछ उस पर वार देता है... ऐसे मनोरम दृश्य का
साक्षी बनकर किसका मन प्रमुदित नहीं हो जाएगा...? यही सारे उदगार आपके साथ साँझा
करने स्वयं को रोक नहीं पाए... आप सबके स्वागत के साथ प्रस्तुत हैं ये उदगार...
शरद निशा की धवल ज्योत्स्ना संग तारक निज
भवन चले
किरणों के संग रास रचाकर थकित चन्द्र निज नीड़ चले |
अब है नवल प्रभात, विमल मधु मलय समीर विलसता है
नवल उल्लसित मधुरिम अरुणिम व्योम समक्ष विकसता है ||
इधर उषा की शुचित श्वेतिमा नव कौमार्य लिए
सकुचाती
पर प्रियतम के मधुर निमन्त्रण पर हौले से आगे आती |
नव मुकुलित मंजरी पवन संग धीमे धीमे खिल खिल जाती
नवल ओस की बून्दों में भीगी वसुधा भी तब मुसकाती ||
नवल हरित परिधान पहन यह धरा नृत्य कर उठती है
पारिजात और कुन्द पुष्प के सौरभ से हर्षाती
है |
लख अनंग सौन्दर्य प्रकृति का, प्रेम समग्र
लुटा देते
और मुदित जन मन ही मन नव नभ में धूम मचा देते ||