आश्विन शुक्ल प्रतिपदा यानी 29 सितम्बर रविवार से समस्त हिन्दू सम्प्रदाय में हर घर में माँ भगवती की
पूजा अर्चना का नव दिवसीय उत्सव शारदीय नवरात्र के रूप में आरम्भ हो जाएगा |
सर्वप्रथम सभी को शारदीय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ...
भारतीय वैदिक परम्परा के अनुसार किसी
भी धार्मिक अनुष्ठान को करते समय सर्वप्रथम कलश स्थापित करके वरुण देवता का
आह्वाहन किया जाता है | आश्विन और चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा को घटस्थापना के
साथ माँ दुर्गा की पूजा अर्चना आरम्भ हो जाती है | घट स्थापना के मुहूर्त पर विचार
करते समय कुछ विशेष बातों पर ध्यान रखना आवश्यक होता है | सर्वप्रथम तो अमायुक्त
प्रतिपदा – अर्थात सूर्योदय के समय यदि कुछ पलों के लिए भी अमावस्या तिथि हो तो उस
प्रतिपदा में घट स्थापना शुभ नहीं मानी जाती | इसी प्रकार चित्रा नक्षत्र और वैधृति
योग में घटस्थापना अशुभ मानी जाती है | माना जाता है कि चित्रा नक्षत्र में यदि घट
स्थापना की जाए तो धननाश और वैधृति योग में हो तो सन्तान के लिए अशुभ हो सकता है |
साथ ही देवी का आह्वाहन, स्थापन, नित्य प्रति की पूजा अर्चना तथा विसर्जन आदि समस्त कार्य प्रातःकाल में ही
शुभ माने जाते हैं | किन्तु यदि प्रतिपदा को सारे दिन ही चित्रा नक्षत्र और वैधृति
योग रहें या प्रतिपदा तिथि कुछ ही समय के लिए हो तो आरम्भ के तीन अंश त्याग कर
चतुर्थ अंश में घटस्थापना का कार्य आरम्भ कर देना चाहिए |
इस वर्ष 28 सितम्बर को रात्रि ग्यारह बजकर छप्पन मिनट के लगभग प्रतिपदा तिथि का आगमन
हो जाएगा और 29 सितम्बर को रात्रि आठ बजकर तेरह मिनट तक
प्रतिपदा रहेगी | 29 सितम्बर को प्रातः छह बजकर बारह मिनट पर
सूर्योदय कन्या लग्न में हो रहा है | उस समय किन्तुघ्न करण और ब्रह्म योग होगा |
सूर्य और चन्द्र दोनों ही कन्या राशि और हस्त नक्षत्र में हैं | इसके अतिरिक्त
लग्न में ही बुध, शुक्र और मंगल भी आकर उत्तम योग बना रहे
हैं | इस प्रकार 6:13 से 7:40 तक कन्या
लग्न में घट स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त है | यदि इस समय में कलश स्थापना में
असुविधा हो तो अभिजित मुहूर्त ऐसा मुहूर्त होता है जिसमें कुछ सोच विचार नहीं करना
पड़ता | 11:47 से 12:35 तक अभिजित
मुहूर्त है | इस अवधि में भी कलश स्थापित किया जा सकता है |
घट स्थापना करते समय जो मन्त्र बोले
जाते हैं उनका संक्षेप में अभिप्राय यही है कि घट में समस्त ज्ञान विज्ञान का, समस्त ऐश्वर्य का तथा समस्त ब्रह्माण्डों का समन्वित स्वरूप विद्यमान है
| किसी भी अनुष्ठान के समय घट स्थापना के द्वारा ब्रहमाण्ड में उपस्थित शक्तियों
का आह्वाहन करके उन्हें जागृत किया जाता है ताकि साधक को अपनी साधना में सिद्धि
प्राप्त हो और उसकी मनोकामनाएँ पूर्ण हों | साथ ही घट स्वयं में पूर्ण है | सागर
का जल घट में डालें या घट को सागर में डालें – हर स्थिति में वह पूर्ण ही होता है
तथा ईशोपनिषद की पूर्णता की धारणा का अनुमोदन करता प्रतीत होता है “पूर्णस्य
पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते” | इसी भावना को जीवित रखने के लिए किसी भी धार्मिक
अनुष्ठान के समय घटस्थापना का विधान सम्भवतः रहा होगा |
नवरात्रों में भी इसी प्रकार घट
स्थापना का विधान है | घट स्थापना के समय एक पात्र में जौ की खेती का भी
विधान है | अपने परिवार की परम्परा के अनुसार कुछ लोग मिट्टी के पात्र में जौ बोते
हैं तो कुछ लोग – जिनके घरों में कच्ची ज़मीन उपलब्ध है – ज़मीन में भी जौ की खेती
करते हैं | किन्हीं परिवारों में केवल आश्विन नवरात्रों में जौ बोए जाते हैं तो कहीं
कहीं आश्विन और चैत्र दोनों नवरात्रों में जौ बोने की प्रथा है | इन नौ दिनों में
जौ बढ़ जाते हैं और उनमें से अँकुर फूट कर उनके नौरते बन जाते हैं जिनके द्वारा
विसर्जन के दिन देवी की पूजा की जाती है | कुछ क्षेत्रों में बहनें अपने भाइयों के
कानों में और पुरोहित यजमानों के कानों में आशीर्वाद स्वरूप नौरते रखते हैं | इसके
अतिरिक्त कुछ जगहों पर शस्त्र पूजा करने वाले अपने शस्त्रों का पूजन भी नौरतों से
करते है | कुछ संगीत के क्षेत्र से सम्बन्ध रखने वाले कलाकार अपने वाद्य यन्त्रों की
तथा अध्ययन अध्यापन के क्षेत्र से सम्बद्ध लोग अपने शास्त्रों की पूजा भी विजय
दशमी को नौरतों से करते हैं |
वास्तव में नवरात्रों में जौ बोना आशा, सुख
समृद्धि तथा देवी की कृपा का प्रतीक माना जाता है | ऐसी भी मान्यता है कि सृष्टि
के आरम्भ में सबसे पहली फसल जो उपलब्ध हुई वह जौ की फसल थी | इसीलिए इसे पूर्ण फसल
भी कहा जाता है | यज्ञ आदि के समय देवी देवताओं को जौ अर्पित किये जाते हैं | एक
कारण यह भी प्रतीत होता है कि अन्न को ब्रह्म कहा गया है और उस अन्न रूपी ब्रह्म
का सम्मान करने के उद्देश्य से भी सम्भवतः इस परम्परा का आरम्भ हो सकता है | आज न
जाने कितने लोग ऐसे हैं जिन्हें दो समय भोजन भी भरपेट नहीं मिल पाता | और दूसरी ओर
कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अपनी प्लेट में इतना भोजन रख लेते हैं कि उनसे खाए नहीं बन
पाता और वो भोजन कूड़े के डिब्बे में फेंक दिया जाता है | यदि हम अन्न रूपी ब्रह्म
का सम्मान करना सीख जाएँ तो इस प्रकार भोजन फेंकने की नौबत न आए और बहुत से भूखे
व्यक्तियों को भोजन उपलब्ध हो जाए | जौ बोने की परम्परा को यदि हम इस रूप में
देखें तो सोचिये प्राणिमात्र का कितना भला हो जाएगा |
अस्तु ! इन नवरात्रों में हम अन्न ब्रह्म का
सम्मान करने की भावना से जौ की खेती अपने घरों में स्थापित करें... हमारी भावनाएँ
उदात्त होंगी तो खेती भी फलेगी फूलेगी और कोई व्यक्ति रात को भूखा नहीं सो सकेगा... साथ ही जल का
सम्मान करने की भावना से घट स्थापित करें...
नवरात्रों की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ... माँ भवानी
सभी का मंगल करें...
https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2019/09/25/ghat-sthapna-in-navratri/