
नवरात्रों में कन्या पूजन की प्रासंगिकता
आज
सभी ने माँ भगवती के छठे रूप – स्कन्दमाता – की उपासना की | शारदीय नवरात्र हों या
चैत्र नवरात्र – माँ भगवती को उनके नौ रूपों के साथ आमन्त्रित करके उन्हें स्थापित
किया जाता है और फिर अन्तिम इन कन्या अथवा कुमारी पूजन के साथ उन्हें विदा किया
जाता है | कन्या पूजन किये बिना नवरात्रों की पूजा अधूरी मानी जाती है | प्रायः
अष्टमी और नवमी को कन्या पूजन का विधान है | देवी भागवत महापुराण के अनुसार दो
वर्ष से दस वर्ष की आयु की कन्याओं का पूजन किया जाना चाहिए | प्रस्तुत हैं कन्या
पूजन के लिए कुछ मन्त्र...
दो
वर्ष की आयु की कन्या – कुमारी
ॐ
ऐं ह्रीं क्रीं कौमार्यै नमः
जगत्पूज्ये
जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरूपिणी |
पूजां
गृहाण कौमारी, जगन्मातर्नमोSस्तुते ||
तीन
वर्ष की आयु की कन्या – त्रिमूर्ति
ॐ
ऐं ह्रीं क्रीं त्रिमूर्तये नम:
त्रिपुरां
त्रिपुराधारां त्रिवर्षां ज्ञानरूपिणीम् |
त्रैलोक्यवन्दितां
देवीं त्रिमूर्तिं पूजयाम्यहम् ||
चार
वर्ष की कन्या - कल्याणी
ॐ
ऐं ह्रीं क्रीं कल्याण्यै नम:
कालात्मिकां कलातीतां कारुण्यहृदयां शिवाम् |
कल्याणजननीं
देवीं कल्याणीं पूजयाम्यहम् ||
पाँच
वर्ष की कन्या - रोहिणी पूजन
ॐ
ऐं ह्रीं क्रीं रोहिण्यै नम:
अणिमादिगुणाधारां अकराद्यक्षरात्मिकाम् |
अनन्तशक्तिकां
लक्ष्मीं रोहिणीं पूजयाम्यहम् ||
छह वर्ष की कन्या - कालिका
ॐ
ऐं ह्रीं क्रीं कालिकायै नम:
कामाचारीं
शुभां कान्तां कालचक्रस्वरूपिणीम् |
कामदां
करुणोदारां कालिकां पूजयाम्यहम् ||
सात
वर्ष की कन्या – चण्डिका
ॐ
ऐं ह्रीं क्रीं चण्डिकायै नम:
चण्डवीरां
चण्डमायां चण्डमुण्डप्रभंजिनीम् |
पूजयामि
सदा देवीं चण्डिकां चण्डविक्रमाम् ||
आठ
वर्ष की कन्या – शाम्भवी
ॐ
ऐं ह्रीं क्रीं शाम्भवीं नम:
सदानन्दकरीं
शान्तां सर्वदेवनमस्कृताम् |
सर्वभूतात्मिकां
लक्ष्मीं शाम्भवीं पूजयाम्यहम् ||
नौ
वर्ष की कन्या - दुर्गा
ॐ
ऐं ह्रीं क्रीं दुर्गायै नम:
दुर्गमे
दुस्तरे कार्ये भवदुःखविनाशिनीम् |
पूजयामि
सदा भक्त्या दुर्गां दुर्गार्तिनाशिनीम् ||
दस
वर्ष की कन्या - सुभद्रा
ॐ
ऐं ह्रीं क्रीं सुभद्रायै नम:
सुभद्राणि
च भक्तानां कुरुते पूजिता सदा |
सुभद्रजननीं
देवीं सुभद्रां पूजयाम्यहम् ||
|| एतै: मन्त्रै: पुराणोक्तै: तां तां कन्यां समर्चयेत ||
इन
नौ कन्याओं को नवदुर्गा की साक्षात प्रतिमूर्ति माना जाता है | इनकी मन्त्रों के
द्वारा पूजा करके भोजन कराके उपहार दक्षिणा आदि देकर इन्हें विदा किया जाता है तभी
नवरात्रों में देवी की उपासना पूर्ण मानी जाती है | साथ में एक बालक की पूजा भी की
जाती है और उसे भैरव का स्वरूप माना जाता है, और इसके लिए मन्त्र है : “ॐ
ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ते नम:” |
हमारी
अपनी मान्यता है कि सभी बच्चे भैरव अर्थात ईश्वर का स्वरूप होते हैं और सभी
बच्चियाँ माँ भगवती का स्वरूप होती हैं, क्योंकि बच्चों में किसी भी प्रकार के
छल कपट आदि का सर्वथा अभाव होता है | यही कारण है कि “जब
कोई शिशु भोली आँखों मुझको लखता, वह सकल चराचर का साथी लगता मुझको |”
अतः
कन्या पूजन के दिन जितने अधिक से अधिक बच्चों को भोजन कराया जा सके उतना ही पुण्य
लाभ होगा | साथ ही कन्या पूजन तभी सार्थक होगा जब संसार की हर कन्या
शारीरिक-मानसिक-बौद्धिक-सामाजिक-आर्थिक हर स्तर पर पूर्णतः स्वस्थ और सशक्त होगी
और उसे पूर्ण सम्मान प्राप्त होगा |
किन्तु
एक बात का ध्यान अवश्य रखें... यदि हम कन्या का – महिला का - सम्मान नहीं कर सकते, कन्याओं की अथवा कन्या
भ्रूण की हत्या में किसी भी प्रकार से सहभागी बनते हैं... तो हमें देवी की उपासना
का अथवा कन्या पूजन का भी कोई अधिकार नहीं है... क्योंकि हम केवल दिखावा मात्र
करते हैं... ऐसा कैसे सम्भव है कि एक ओर तो हम साक्षात त्रिदेवी माता
लक्ष्मी-दुर्गा-सरस्वती की प्रतीक कन्याओं को स्वयं पर बोझ समझकर कन्या भ्रूण
हत्या जैसे घृणित कर्म के साक्षी बनें और दूसरी ओर देवी की उपासना और कन्या पूजन
भी करें...? माँ भगवती की कृपादृष्टि चाहिए तो पहले हमें कन्याओं को समाज का
आवश्यक अंग समझते हुए उनके प्रति सम्मान की और स्नेह की भावना अपने मन में दृढ़
करनी होगी... तभी हमारे द्वारा की गई माँ भगवती की उपासना और कन्या पूजन सार्थक
होगा...
यद्यपि
कोरोना अभी समाप्त नहीं हुआ है इस कारण से सम्भव है इस वर्ष कन्या पूजन में अधिक
कन्याएँ न उपलब्ध हो सकें... फिर भी अधिक से अधिक बच्चों को अष्टमी और नवमी
तिथियों को भोजन कराते हुए पूर्ण हर्षोल्लासपूर्वक जगदम्बा को अगले नवरात्रों में
आने का निमन्त्रण देते हुए विदा करें, इस कामना के साथ कि माँ भगवती अपने सभी
रूपों में जगत का कल्याण करें...
यातु
देवी त्वां पूजामादाय मामकीयम् |
इष्टकामसमृद्ध्यर्थं
पुनरागमनाय च ||