प्रकृति के समस्त कार्य नियमों में बंधे
होते हैं – एक लय में बंधे होते हैं | लेकिन इसके साथ ही प्रकृति का हर अंग अपने
शर्तों पर प्रवाहमान रहता है | इनका प्रवाह तभी बाधित होता है जब ये अपने चरम से
जा मिलते हैं | कुछ ऐसा ही भाव आज की रचना में है... “नियम प्रकृति का”...