प्रेम – एक ऐसी भावना जो व्यक्ति को अपने भीतर झाँकने की सामर्थ्य प्रदान करती है – आत्मस्थ होने की सामर्थ्य प्रदान करती है, और तब व्यक्ति की इच्छा होती है कि वह कुछ समय के लिए एकान्त का अनुभव करे और अपना स्वयं का अवलोकन करे | उसी एकाकीपन में उसे आनन्द का अनुभव होता है, क्योंकि तब वह अपने भीतर के प्रेम से सम्पर्क साधने का प्रयास करता है |
निश्चित रूप से, यदि हमारा मन आनन्द तथा उल्लास से परिपूर्ण होगा – सहज और नि:स्वार्थ प्रेम से परिपूर्ण होगा – तो हमारा शरीर भी ऊर्जावान रहेगा और हमारा जीवन बच्चों जैसा सहज हो जाएगा…
हम सब अपने भीतर के सहज और नि:स्वार्थ प्रेम से सम्पर्क साधते हुए स्वयं को बच्चों जैसा सहज बनाएँ – ताकि पूर्ण ऊर्जा और आनन्द के साथ अपने कर्तव्य कर्मों को पूर्ण कर सकें… इसी कामना के साथ सभी को एक और नई सुबह की उल्लासमयी शुभकामनाएँ…