हम सभी प्रायः
अनन्त की बातें करते हैं,
असम की बातें करते हैं, नवग्रहों और नवधा भक्ति आदि की बहुत
सी दार्शनिक बातें करते हैं... मोक्ष की बातें करते हैं... लेकिन हम समझते हैं जिस
दिन हमने समस्त चराचर में अपने दर्शन कर लिए... सबके साथ समभाव हो गए... उस दिन
हमें कुछ भी बाहर खोजना नहीं पड़ेगा... उस दिन हम स्वयं ही समस्त चराचर पर प्रेम
सुधा बरसाना आरम्भ कर देंगे... कुछ इसी प्रकार के भावों से युक्त है हमारी आज की
रचना... प्रेम सुधा...
श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पाद सेवन, अर्चन, वन्दन
समा जाएँगे सब दास्य और साख्य भाव में
खो जाएगा तब उस परमात्मा में / जो है उसका ही आत्मतत्व
और नृत्य करेगा भूलकर अपना
अस्तित्व / आह्लादित होकर
क्योंकि देख सकेगा सत्ता उस
अनादि की / उस अनन्त की / उस असीम की
पूरी रचना सुनने के लिए कृपया वीडियो
पर जाएँ... कात्यायनी...