आज एक मित्र ने
मल मास यानी अधिक मास के सन्दर्भ में कुछ वैज्ञानिक तथ्य प्रस्तुत किये, जिनमें प्रमुख है कि
उनका मानना है कि सूर्य जब धनु या मीन राशि में आता है तब मल मास या खर मास कहलाता
है | तो इस प्रकार तो हर वर्ष मल मास होना चाहिए क्योंकि इन दोनों ही राशियों में
सूर्य का गोचर हर वर्ष होता है | साथ ही सिंहस्थ बृहस्पति को भी मल मास का कारण
बताया है | लेकिन समस्या ये है कि बृहस्पति एक वर्ष तक एक ही राशि में भ्रमण करता
है तो इस प्रकार से हर बारहवें वर्ष मल मास आना चाहिए | लेकिन ऐसा भी नहीं है | जहाँ
तक वैदिक ज्योतिषीय गणना का प्रश्न है तो उसके आधार पर मल मास या अधिक मास वाला
वर्ष हिन्दी महीनों का Leap Year कहा जा सकता है, जो चन्द्रमा की घटती बढ़ती कलाओं के कारण चन्द्रमा और सूर्य की दूरी में
सामंजस्य स्थापित करता है | उस समय सूर्य शकुनि, चतुष्पद,
नाग या किन्स्तुघ्न करणों में से किसी में होता है और ये चारों ही करण निम्न माने जाते
हैं इसलिए सम्भवतः अधिक मास को मल अथवा खर यानी दुष्ट मास कहने की प्रथा रही होगी
| जैसे इस वर्ष अधिक मास के आरम्भ में किन्स्तुघ्न करण होगा |
जिस प्रकार अंग्रेजी
वर्ष में हर चार साल में Leap Year हो जाता है और फरवरी 29 दिन की हो जाती है, उसी प्रकार हिन्दी में पूरा एक
मास ही अधिक मास हो जाता है | इस वर्ष आश्विन मास अधिक मास हो रहा है जो आश्विन
शुक्ल प्रतिपदा (अधिक) यानी 18 सितम्बर से आरम्भ होकर
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा यानी 16 अक्तूबर तक रहेगा | इस समय
गुरुदेव स्वराशि धनु में रहेंगे और आदित्यदेव कन्या राशि में |
भारतीय
धर्मशास्त्रों तथा श्रीमद्भागवत तथा देवीभागवत महापुराण आदि अनेक पुराणों के
अनुसार प्रत्येक तीसरे वर्ष वैदिक महीनों में एक महीना अधिक हो जाता है जिसे अधिक
मास,
मल मास, खर मास अथवा पुरुषोत्तम मास कहा जाता है | यह महीना
क्योंकि बारह महीनों के अतिरिक्त होता है इसलिए इसका कोई नाम भी नहीं है | पुराणों के अनुसार अधिक मास को भगवान् विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होने
के कारण इस माह को पुरुषोत्तम मास कहा जाता है |
अधिक मास के
विषय में हमारे विद्वान् पण्डितों की मान्यता है कि इस अवधि में कोई भी धार्मिक
अनुष्ठान यदि किया जाए तो वह कई गुणा अधिक फल देता है | साथ ही इस अवधि में
मांगलिक कार्य जैसे विवाह, नूतन गृह प्रवेश आदि वर्जित माने
जाते हैं | किन्तु यह अधिक मास होता किसलिए है ? यदि 30-31 दिनों का एक माह होता है तो फिर 364-365 दिनों के एक वर्ष में
ये एक मास अधिक कैसे हो जाता है ?
यह सौर वर्ष और चान्द्र वर्ष में सामंजस्य
स्थापित करने के लिए एक गणितीय प्रक्रिया है |
सौर वर्ष का मान लगभग 365-366 दिन (365 दिन, 15 घड़ी, 22 पल और 57 विपल) माना जाता है | जबकि चान्द्र
वर्ष का मान लगभग 354-355 दिन (354 दिन, 22 घड़ी, एक पल और 23 विपल माना गया है | इस प्रकार प्रत्येक
वर्ष में तिथियों का क्षय होते होते लगभग दस से ग्यारह दिन का अन्तर पड़ जाता है जो
तीन वर्षों में तीस दिन का होकर पूरा एक माह बन जाता है | इस
प्रकार प्रत्येक तीसरे वर्ष चान्द्र वर्ष बारह माह के स्थान पर तेरह मास का हो
जाता है | यह प्रक्रिया भारतीय वैदिक ज्योतिष
का एक विशिष्ट अंग है | किन्तु
असम, बंगाल, केरल और तमिलनाडु में
अधिक मास नहीं होता क्योंकि वहाँ सौर वर्ष माना जाता है |
यस्मिन् चन्द्रे
न संक्रान्ति: सो अधिमासो निगह्यते
यस्मिन् मासे
द्विसंक्रान्ति: क्षय: मास: स कथ्यते
अर्थात इसको इस
प्रकार भी समझ सकते हैं कि जब दो अमावस्या के मध्य अर्थात पूरे एक माह में सूर्य
की कोई संक्रान्ति नहीं आती तो वह मास अधिकमास कहलाता है | इसी प्रकार यदि एक
चान्द्रमास के मध्य दो सूर्य संक्रान्ति आ जाएँ तो वह क्षय मास हो जाता है –
क्योंकि इसमें चान्द्रमास की अवधि घट जाती है | क्षय मास
केवल कार्तिक, मार्गशीर्ष तथा पौष मास में होता है |
जैसा कि ऊपर लिखा, अधिक मास को स्वयं भगवान् विष्णु का
आशीर्वाद प्राप्त है इसीलिए इस पुरुषोत्तम मास में भगवान् विष्णु की पूजा अर्चना
का विधान है | किन्तु सबसे उत्तम ईश सेवा मानव सेवा होती है
– मानव सेवा माधव सेवा... हम सभी प्राणियों तथा समस्त प्रकृति के साथ समभाव और
सेवाभाव रखते हुए आगे बढ़ते रहें, पुरुषोत्तम मास में इससे
अच्छी ईशोपासना हमारे विचार से और कुछ नहीं हो सकती...
https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2020/01/07/purushottam-month-or-adhik-maas/