
पुष्प बनकर क्या करूँगी, पुष्प का सौरभ ही दे दो |
दीप बनकर क्या करूँगी, दीप का आलोक दे दो ||
हर नयन में देखना चाहूँ अभय मैं
हर भवन में बाँटना चाहूँ हृदय मैं
बंध सके ना वृन्त डाल पात से जो
थक सके ना धूप वारि वात से जो
भ्रमर बनकर क्या करूँगी, भ्रमर का गुंजार दे दो ||
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कात्यायनी...