Sanskaar
जन्म से पुनर्जन्म
“संस्कारों हि नाम संस्कार्यस्य गुणाधानेन वा स्याद्योषाप नयनेन वा || – ब्रह्मसूत्र भाष्य 1/1/4 अर्थात व्यक्ति में गुणों का आरोपण करने के लिए – गुणों का विस्तार करने के लिए जो कर्म किया जाता है वह संस्कार कहलाता है |
संस्कार – जन्म से अन्तिम यात्रा तक की अवधि में किये जाने वाले विविध संस्कार – जिन्हें “जन्म से पुनर्जन्म” तक की यात्रा का मार्ग कहना ही उचित होगा |
मैं ज्योतिष की बात करते करते संस्कारों की बात क्यों करने लगी, यही सोच रहे होंगे आप ? तो ऐसा इसलिए क्योंकि संस्कारों के लिए ज्योतिष की आवश्यकता होती है – यों कहिये कि ज्योतिष संस्कार कर्मों का एक आवश्यक अंग है | ज्योतिषीय सूत्रों के आधार पर ग्रह नक्षत्रों की गणना के बाद ही किसी संस्कार विशेष के लिए मुहूर्त निकाला जाता था, और यह प्रथा आज तक भी चली आ रही है | वास्तव में तो यदि व्यावहारिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो व्यक्ति को संस्कारित ही इसीलिए किया जाता है ताकि वह अपने सभी कर्म उचित रूप से करते हुए – उचित व्यवहार करते हुए – जन्म से पुनर्जन्म तक की यात्रा निरवरोध सम्पन्न कर ले | लगभग सभी भारतीय दर्शन किसी न किसी रूप में पुनर्जन्म को स्वीकार करते हैं | माना जाता है कि पुनर्जन्म में व्यक्ति का रूप गुण चरित्र भाग्य सब कुछ उसके पूर्व जन्म के संचित कर्मों के आधार पर ही निश्चित होता है | हम सोच सकते हैं कि पूर्व जन्म को हमने देखा नहीं तो कैसे उसका फल हमें इस जन्म में प्राप्त हो सकता है ? हम यह भी सोच सकते हैं कि अगले जन्म के विषय में भी हमें कुछ ज्ञात नहीं तो क्यों उस पर विचार किया जाए ? बात अपनी जगह सही है | जो देखा नहीं और जिसके विषय में कुछ ज्ञान नहीं उसके विषय में कोई भी कैसे कुछ कह सकता है ? इसलिए जो कुछ भी है इसी जन्म में है – क्योंकि यही प्रत्यक्ष है |
निश्चिन्तता तथा सकारात्मकता के साथ रचनात्मक (Peaceful, Creative & Positive) जीवन जीने के लिए यह विचार वास्तव में उपयोगी विचार है | किन्तु इसके लिए पुनर्जन्म के सिद्धान्त को भी मान्यता देनी होगी, क्योंकि हमारा वर्तमान इसी मूलभूत सिद्धान्त के आधार पर निर्मित होता है | गीता में महाभारत युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन ! तेरे भी कई जन्म हो चुके हैं और मेरे भी कई जन्म हो चुके हैं, किन्तु मुझे अपने सारे जन्म याद हैं लेकिन तुझे याद नहीं | यही कारण है कि तेरे लिए यह जन्म नया है और तू इसमें आसक्त है | लेकिन इतना स्मरण रख कि जिस प्रकार व्यक्ति पुराने वस्त्र त्याग कर नवीन वस्त्र धारण करता है उसी प्रकार आत्मा भी पुराना शरीर त्याग कर नवीन शरीर धारण करती है – “वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरो पराणि | तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ||” क्रमशः…