साक़ी भरके दे साग़र, ये रात आज की मतवाली है |
कल का होश नहीं अब कोई, रात आज की मतवाली है ||
आने वाली सुबह में शायद मधु का रहे न यह आकर्षण |
पीने और पिलाने के हित नयनों का ना हो संघर्षण |
जीवन क्या है, कच्चे धागों का झीना सा एक आवरण ||
इसी हेतु जीवन वीणा की तन्त्री से झनकार उठी है |
कण कण को झकझोर रही है, रात आज की मतवाली है ||
कल इस पथ पर अँधियारे में टूट गया था चषक माट का |
मधु का किसको होश, नहीं था विष भी कोई पिलाने वाला |
हँस हँस कर इन गलियारों में रोता था यह मन बेचारा ||
किन्तु तुम्हारी आँखों में यों भरी हुई है मधु की बदली
मानों मुझे पिलाने को ही रात आज की मतवाली है ||
नयनों के इन मधु प्यालों में आओ डुबा दें सुध ही कल की
नहीं व्यर्थ हो जाएगी गहराई नयनों के सागर की |
मैं तो चाहूँ आज भूलना चिंता जीवन और मृत्यु की ||
छलक उठे यों मधु जीवन में, बिन माँगे वरदान को जैसे
मुझे दान करने के हित ही रात आज की मतवाली है ||
खेल आज और कल का यों ही चलता रहता युगों युगों तक |
किन्तु नहीं छू पाता कल की सीमा यह मन युगों युगों तक |
जीवन के संग मरण, रहेगा यही नियम तो युगों युगों तक ||
तबही तो मेरे मन की अनुराग भरी क्वाँरी आशा को
सदा सुहागिन करने हित ही रात आज की मतवाली है ||