जन्म से पुनर्जन्म – बात चल रही थी गर्भ संस्कारों की... उसे ही आगे बढाते हैं...
गर्भाधान – आत्मा का पुनर्जन्म – एक शरीर को त्यागने के बाद अपनी इच्छानुसार आत्मा अन्य शरीर में प्रविष्ट होकर नौ माह तक माता के गर्भ में निवास करने का बाद पुनः जन्म लेती है... एक नन्हे से शिशु के रूप में... एक नन्ही कली या एक नन्हे फ़रिश्ते के रूप में... वास्तव में आत्मा का यह पुनर्जन्म होता है... यही गीता और उपनिषदों में कहा भी गया है... और गर्भ धारण करने से पूर्व से लेकर शिशु के जन्म के बाद तक जितने संस्कार किये जाते हैं वे सभी आत्मा की “इस जन्म से पुनर्जन्म” तक की यात्रा को सुखद तथा सरल बनाने के लिए ही किये जाते हैं... ताकि वह पूर्ण विश्वास के साथ सांसारिक जीवन में प्रविष्ट हो सके... इस श्रृंखला में हमने गर्भाधान और पुंसवन की बात की... आज बात करते हैं सीमन्तोन्नयन संस्कार की...
पुंसवन संस्कार के बाद सीमन्तोन्नयन संस्कार किया जाता था | सीमन्त का अर्थ है मस्तक और उन्नयन का अर्थ है उत्थान – विकास | अर्थात मानसिक विकास के लिए यह संस्कार किया जाता था | “सीमन्त: उन्नीयते यस्मिन्कर्मणि तत्सीमन्तोन्नयनमिति कर्मनामधेयम् |” इस प्रकार गर्भस्थ शिशु के शारीरिक विकास के लिए पुंसवन संस्कार और मानसिक विकास तथा दुष्ट आत्माओं को शिशु से दूर रखने के लिए सीमन्तोन्नयन संस्कार किया जाता था | गर्भ के चौथे, छठे अथवा आठवें माह में इस संस्कार को करने का विधान मनीषियों ने प्रतिपादित किया है | “प्रथम गर्भायाश्चतुर्थे मासि सीमन्तोन्नयनम् | षष्ठे अष्टमे वा सीमन्त: |” सुश्रुत ने कहा है “पञ्चमे मन: प्रतिबुद्धतरं भवति, षष्ठे बुद्धि:... पञ्चम माह में गर्भस्थ शिशु का मन प्रबुद्ध होकर छठे माह में बुद्धि उन्नत होती है | सप्तम माह में अंग प्रत्यंग पूर्ण रूप से परिलक्षित होने लगते हैं और अष्टम माह में शिशु का ओज विकसित तथा स्थिर होने लगता है |
इसके अतिरिक्त इस संस्कार का एक प्रयोजन गर्भिणी को प्रसन्नचित्त रखना भी था | क्योंकि प्रसन्न तथा विदुषी और संस्कारित माता के गर्भ से ही उत्तम सन्तान का जन्म सम्भव है | माता जब तक इस तथ्य को नहीं समझेगी कि सन्तान का मानसिक विकास अब उसका उत्तरदायित्व है तब तक शिशु का मानसिक विकास उचित रूप में नहीं हो पाएगा | अतः आठवें माह तक आते आते शिशु के शरीर, मन, बुद्धि, हृदय सभी को स्वस्थ और क्रियाशील बनाए रखना माता का उत्तरदायित्व होता है |
कभी कभी आवश्यकता होने पर पुंसवन और सीमन्तोन्नयन एक साथ भी किये जा सकते थे | आजकल पैसे का अनुपयुक्त प्रदर्शन करके बहुत बड़े स्तर पर किया जाने वाला Baby Shower वास्तव में पुंसवन और सीमन्तोन्नयन संस्कारों का ही आधुनिक रूप है | किन्तु आज ये संस्कार बहुतायत में तो मनोरंजन तथा पैसे का भद्दा दिखावा मात्र ही बनकर रह गए हैं | जबकि यथार्थ में इन संस्कारों का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्त्व था और इनके पीछे ये महान सोच थी कि परिवार, समाज तथा राष्ट्र को सुसंस्कृत और सभ्य नई पीढ़ी उपलब्ध हो सके | और इसीलिए Astrologer के द्वारा ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर शुभ मुहूर्त का चयन करके उस मुहूर्त विशेष में इन संस्कारों को सम्पन्न किया जाता था |
क्या ही अच्छा हो कि हम इन संस्कारों के मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक महत्त्व को समझकर इन्हें इनके पारम्परिक रूप में ही सम्पन्न करते रहें, ताकि परिवार, समाज तथा राष्ट्र को योग्य और उत्तम कर्णधार प्राप्त हो सकें...
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http://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2018/07/05/samskaras-9/