शनि – Saturn
वैदूर्यकान्ति रमल: प्रजानां वाणातसी कुसुमवर्णविभश्च शरत: |
अन्यापि वर्ण भुव गच्छति तत्सवर्णाभि सूर्यात्मज: अव्यतीति मुनि प्रवाद: ||
वैदूर्य मणि तथा अलसी के पुष्प के समान कान्ति वाले शनि के विषय में पुराणों में अनेक आख्यान उपलब्ध होते हैं | जिनमें प्रमुख यही है कि शनि सूर्य की पत्नी छाया के गर्भ से उत्पन्न हुए थे | इनका श्याम वर्ण देखकर सूर्य ने अपनी पत्नी पर आरोप लगाया कि शनि उनका पुत्र है ही नहीं | बड़े होने पर जब शनि को इस बात का पता चला तभी से सूर्य को वे अपना शत्रु मानने लगे | उन्होंने शिवजी की तपस्या करके अपने पिता सूर्य के समान शक्तियाँ प्राप्त कीं | साथ ही शिवजी से वरदान प्राप्त किया कि उनकी माता को कष्ट पहुँचाने वाले उनके पिता के साथ ही अन्य देवता तथा मानव भी उनसे भयभीत रहेंगे | और भी अनेक कथाएँ इस विषय में उपलब्ध होती हैं | किन्तु यहाँ हम वैदिक ज्योतिष के आधार पर इस ग्रह की बात कर रहे हैं |
भारत ीय वैदिक ज्योतिष में शनि को मन्दगामी भी कहा जाता है | यह इतना मन्दगति ग्रह है कि एक राशि से दूसरी राशि में जाने में इसे ढाई वर्ष का समय लगता है, किन्तु वक्री, मार्गी अथवा अतिचारी होने की दशा में इस अवधि में कुछ समय का अन्तर भी आ सकता है | माना जाता है कि शनि हमारे कर्मों का फल हमें प्रदान करता है | प्रायः इसे स्वाभाविक मारक और अशुभ ग्रह माना जाता है | विशेष रूप से इसकी दशा, ढैया तथा साढ़ेसाती को लेकर जन साधारण में बहुत भय व्याप्त रहता है | जबकि वास्तविकता तो यह है कि प्रकृति में सन्तुलन स्थापित करने के साथ यह ग्रह व्यक्तियों के साथ उचित न्याय भी करता है | पुष्य, अनुराधा औत उत्तर भाद्रपद नक्षत्रों तथा मकर और कुम्भ राशियों का स्वामित्व इसे प्राप्त है | तुला में शनि अपनी उच्च राशि में होता है जबकि मेष में नीच का माना जाता है | सूर्य, चन्द्र तथा मंगल इसके शत्रु ग्रह हैं, जबकि बुध और शुक्र मित्र ग्रह तथा गुरु सम ग्रह है | इसे नीरस वृक्षों की उत्पत्ति करने वाला तथा सदा वृद्ध माना जाता है | पश्चिम दिशा तथा शिशिर ऋतु का स्वामी शनि को माना जाता है | जिस व्यक्ति की कुण्डली में शनि प्रतिकूल अवस्था में होता है तो इसके वात प्रकृति होने के कारण जातक को वायु विकार, कम्प, हड्डियों तथा दाँतों से सम्बन्धित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है | इसकी दशा 19 वर्ष की मानी जाती है |
शनि को प्रसन्न करके उसके दुष्प्रभाव को शान्त करने के लिए Vedic Astrologer कुछ मन्त्रों के जाप का सुझाव देते हैं | प्रस्तुत हैं उन्हीं में से कुछ मन्त्र…
वैदिक मन्त्र : ॐ शं शनैश्चराय नम: अथवा : ॐ ऐं ह्लीं श्रीशनैश्चराय नम:
पौराणिक मन्त्र : ॐ ह्रिं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् | छाया मार्तण्डसम्भूतं त्वं नमामि शनैश्चरम् ||
तन्त्रोक्त मन्त्र :ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:
बीज मन्त्र : ॐ खां खीं खूं स: मन्दाय नम:
गायत्री मन्त्र : ॐ कृष्णांगाय विद्महे रविपुत्राय धीमहि तन्नो सौरि: प्रचोदयात्
सब पर शनिदेव की कृपादृष्टि बनी रहे यही कामना है…