शनिकवचम् – Shani Kavacham
नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् |
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ||
भारत ीय वैदिक ज्योतिष में शनि को मन्दगामी भी कहा जाता है | यह इतना मन्दगति ग्रह है कि एक राशि से दूसरी राशि में जाने में इसे ढाई वर्ष का समय लगता है, किन्तु वक्री, मार्गी अथवा अतिचारी होने की दशा में इस अवधि में कुछ समय का अन्तर भी आ सकता है | माना जाता है कि शनि हमारे कर्मों का फल हमें प्रदान करता है | प्रायः इसे स्वाभाविक मारक और अशुभ ग्रह माना जाता है | विशेष रूप से इसकी दशा, ढैया तथा साढ़ेसाती को लेकर जन साधारण में बहुत भय व्याप्त रहता है | जिस व्यक्ति की कुण्डली में शनि प्रतिकूल अवस्था में होता है तो इसके वात प्रकृति होने के कारण जातक को वायु विकार, कम्प, हड्डियों तथा दाँतों से सम्बन्धित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है | इसकी दशा 19 वर्ष की मानी जाती है | शनि को प्रसन्न करके उसके दुष्प्रभाव को शान्त करने के लिए Vedic Astrologer कुछ मन्त्रों के जाप का सुझाव देते हैं | जिनमें शनि कवच भी शामिल है | अतः, प्रस्तुत है कश्यप ऋषि द्वारा प्रणीत शनिकवचम्…
कोणस्थ पिंगलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रोन्तको यम: |
सौरि: शनैश्चरो मन्द: पिप्पलादेन संस्तुत: ||
कोणस्थ (कोण में विराजमान) पिंगल, बभ्रु, कृष्ण, रौद्रान्तक, यम, सौरि, शनैश्चर, मन्द, पिप्पलाद शनिदेव के इन दशनामों का स्मरण करते हुए प्रस्तुत है शनिकवचम्…
|| अथ श्री शनिकवचम् ||
अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमन्त्रस्य कश्यप ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः, शूं कीलकम्, शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः ||
नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान् |
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद्वरदः प्रशान्तः ||
ब्रह्मोवाच :
श्रुणूध्वमृषयः सर्वे शनिपीडाहरं महत् |
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् ||
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम् |
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् ||
ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनन्दन: |
नेत्रे छायात्मजः पातु पातु कर्णौ यमानुजः ||
नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा |
स्निग्धकण्ठंश्च मे कण्ठं भुजौ पातु महाभुजः ||
स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रदः |
वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितत्सथा ||
नाभिं ग्रहपतिः पातु मन्द: पातु कटिं तथा |
ऊरू ममान्तक: पातु यमो जानुयुगं तथा ||
पादौ मन्दगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः |
अङ्गोपाङ्गानि सर्वाणि रक्षेन्मे सूर्यनन्दन: ||
इत्येतत्कवचं दिव्यं पठेत्सूर्यसुतस्य यः |
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवति सूर्यजः ||
व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा |
कलत्रस्थो गतो वापि सुप्रीतस्तु सदा शनिः ||
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे |
कवचं पठतो नित्यं न पीडा जायते क्वचित् ||
इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यनिर्मितं पुरा |
द्वादशाष्टमजन्मस्थदोषान्नाशयते सदा ||
जन्मलग्नास्थितान्दोषान्सर्वान्नाशयते प्रभुः ||
II इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे ब्रह्मनारदसम्वादे शनैश्चरकवचं सम्पूर्णम् ||
शान्ति तथा सन्तुलन के पर्याय शनिदेव सबके जीवन में प्रसन्नता और शान्ति प्रसारित करें…