धर्म और मज़हब के नाम पर जो एक सिरफिरापन हर तरफ दिखाई दे रहा है उसी विषय पर एक अच्छा लेख डॉ दिनेश शर्मा का. ..
सिरफिरे
दिनेश डॉक्टर
कुछ सिरफिरे इधर भी है और उधर भी !
क्योंकि ये सिरफिरे है तो इनका सोच भी बेसिर पैर का ही है ।
जैसे कुछ सोचते हैं कि बीस पच्चीस करोड़ मुसलमान हनुमान जी की गदा
से एक ही रात में धुआं होकर गायब हो जाएंगे और भारत हमेशा के लिए हिन्दू राष्ट्र
बन जाएगा ।
और कुछ सोचते है कि अल्लाह का एक एक बंदा इतना ताकतवर है कि सौ सौ
काफिरों को नाराए तकदीर चिल्ला कर बंधे हुए बकरों की तरह जिबह करके इस मुल्क में
ग़ज़वाये हिन्द का सदियों पुराना मंसूबा पूरा कर देगा ।
अब क्योंकि ये सिरफिरे है तो हर दूसरे तीसरे सिरफिरे की बात पर
आसानी से यकीन भी कर लेते है । ये सोचते है कि ऐसा होने से सूबों में नदियों के
पानी के बंटवारे के, हवा और पानी के प्रदूषण के, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के, भाषाओं के, जातियों के, शिया सुन्नी अहमदियों के, बलोचों और कश्मीरियों के, देवबंदियों और बरेलवियों
के वगैरा वगैरा सारे मसले छू मंतर हो जाएंगे ।
मेरी आपकी बातें इनके पल्ले नहीं पड़ने वाली क्योंकि धर्म या मजहब
नाम के तेज़ कास्टिक सोडे से इनका ब्रेन वाश या सिर धुलाई अच्छी तरह हो रक्खी है ।
ऐसा न करें कि इनको इनकी बेसिरपैर की दुनिया में छोड़ कर ठण्डी ठंडी आइस्क्रीम
खाएँ ।
कहते है कि ठंडी ठंडी आइसक्रीम खाने से दिमाग सुन्न
यानी के नम्ब हो जाता है ।