कोरोना की
विकरालता एक ओर कुछ कम होने लगी है – जैसा समाचारों से ज्ञात हो रहा है,
तो वहीं दूसरी ओर समाचारों से ही ये भी ज्ञात हुआ कि काली और सफ़ेद फंगस के मामले
बढ़ते जा रहे हैं... और अब तो हमारे देश का भविष्य – हमारे बच्चे – इससे संक्रमित
होते जा रहे हैं... सच में स्थिति तो बहुत चिन्ता जनक है,
क्योंकि बच्चों को हल्का से बुखार भी हो जाए तो उसी में माता पिता की जान निकली
जाती है, फिर ये तो ऐसी महामारी है कि जिसके विषय में सोचते
हुए भी डर लगता है... इस स्थिति में दवा, साफ़ सफाई, सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क और
इम्यूनिटी बढ़ाने के उपायों के साथ ही ईश्वर से करुण पुकार भी करने की आवश्यकता है
कि इस स्थिति से हमें शीघ्र ही मुक्ति प्राप्त हो...
तुम्हारे चरण की
शरण आ गए हैं, प्रभो गिरते गिरते सम्हलते सम्हलते |
दयानाथ अब तो
हमें आसरा दो, बड़ी उम्र गुजरी भटकते भटकते ||
तुम्हारे चरण की
शरण आ गए हैं...
रहे बालपन में
तो हम बेख़बर ही, जवानी भी बस हमने यूँ ही गँवा दी |
बुढ़ापे में अब
हो गए हैं जो बेबस, तुम्हें टेरते हैं सिसकते सिसकते ||
तुम्हारे चरण की
शरण आ गए हैं...
सुना है कि
दीनों के रक्षक रहे तुम, सदा ही किया तुमने पतितों को पावन |
तो अब हे प्रभो
देर क्यों हो रही है, क़दम उठ रहे क्यों झिझकते झिझकते ||
तुम्हारे चरण की
शरण आ गए हैं...
हैं पापी अगर हम,
तो फिर ये भी सच है, कि हैं आप भी पापियों के उधारक |
तो भवसिन्धु में
किसलिए अपना बेड़ा, पड़ा रह गया यों खिसकते खिसकते ||
तुम्हारे चरण की
शरण आ गए हैं...
तुम्हीं सोच लो
कौन बदनाम होगा, हमारा जो उद्धार तुम कर न पाए |
तुम्हीं से
कहेगा ये सारा ज़माना, इन्हें तज दिया क्यों तरसते तरसते ||
तुम्हारे चरण की
शरण आ गए हैं...
यूँ ही धूप छाँ
रात दिन जा रहे हैं, यूँ ही चाँद सूरज भी मुसका रहे हैं |
न जाने दयानाथ
कब आ रहे हैं, नज़र ठक गई रास्ता तकते तकते ||
तुम्हारे चरण की
शरण आ गए हैं...