
तुम्हारी याद यों आए... यादों के कितने ही
रूप हो सकते हैं – कितने ही रंग हो सकते हैं... और आवश्यक नहीं कि हर पल किसी
व्यक्ति या वस्तु या जीव की याद ही व्यक्ति को आती रहती हो... व्यक्ति का मन इतना
चंचल होता है कि सभी अपनों के मध्य रहते हुए भी न जाने किस अनजान अदेखे की याद उसे
उद्वेलित कर जाती है... इन्हीं उलझी सुलझी यादों को अनेक प्रकार के उपमानों के
द्वारा वर्णित करने का प्रयास प्रस्तुत रचना में है... वो कभी किसी ऐसी रूपसी जैसी
हो सकती हैं जो स्व्रर्णकलश लिए चली आ रही हो... कभी भोर की प्रथम किरण सरीखी हो
सकती हैं – जो अभी अभी किसी पहाड़ी के पीछे से निकल कर आई हो... इसी प्रकार के कुछ
उलझे सुलझे से भाव यादों के लिए प्रदर्शित करने का प्रयास सुधी पाठकों और दर्शकों के
समक्ष प्रस्तुत है... पूरी रचना सुनने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करके वीडियो
देखें... धन्यवाद... कात्यायनी...