यादो के अनेक
रूप होते हैं, अनेकों भाव और अनेकों रंग होते हैं...
अपनी पिछली रचना "तुम्हारी याद यों आए" में यादों को इसी प्रकार के कुछ
उपमानों के साथ चित्रित करने प्रयास था, आज की रचना "ऐसे याद
तुम्हारी आए, सूर्य डूब जाने पर जैसे अलबेली संध्या अलसाए..." में भी इसी प्रकार का प्रयास किया गया है... सुधी श्रोताओं और पाठकों की शुभकामनाएँ अपेक्षित हैं... रचना सुनने के लिए वीडियो देखें... कात्यायनी...