आज प्रयास करते हैं दश महावियाओं के रूप गुणादि के विषय में समझने का…
इन महाविद्याओं में सर्वप्रथम नाम आता है “काल (मृत्यु) का भी भक्षण करने में समर्थ, घोर भयानक स्वरूप वाली साक्षात योगमाया भगवान विष्णु के अन्तः करण की शक्ति” माँ काली का | देवासुर संग्राम में जब देवताओं ने देवी भगवती की उपासना की तो पार्वती के शरीर से महाकाली ही उत्पन्न हुई थीं तथा इनका वर्ण काला था | इनका रूप विकराल है तथा अनेक प्रकार के उपद्रवों में ये ही भगवान विष्णु की सहायता करती हैं | असाध्य रोगों से मुक्ति, दुष्टात्माओं या क्रूर ग्रहों की शान्ति, अकाल मृत्यु से बचाव तथा वाक्सिद्धि के लिए इनकी उपासना की जाती है | इनकी आराधना के लिए मन्त्र है “ॐ क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा: |”
द्वितीय महाविद्या भगवती तारा, ब्रह्माण्ड में उत्कृष्ट तथा सर्व ज्ञान से समृद्ध हैं, तथा घोर संकट से मुक्त करने वाली और जन्म-मृत्यु रूपी चक्र से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करने वाली महाशक्ति के रूप में जानी जाती हैं | यह देवी प्रकाश बिन्दु के रूप में आकाश में तारे के सामान विद्यमान हैं | इसी विध्वंसक शक्ति के द्वारा भगवान राम ने रावण का वध किया था | इनकी उपासना पूर्ण रूप से तान्त्रिक उपासना है तथा बौद्ध सम्प्रदाय में भी इनकी उपासना की जाती है | तारा देवी की उपासना के लिए मन्त्र है “ॐ ह्रीं स्त्रीं हूँ फट |”
तृतीय महाविद्या हैं तीनों लोकों में सर्वाधिक सुन्दर तथा मनोरम, सोलह वर्षीय चिर यौवना त्रिपुरसुन्दरी | त्रिपुरसुन्दरी का अर्थ ही है वह नारी जो तीनों लोकों में सबसे अधिक सुन्दर हो | ये समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली तथा श्री कुल की अधिष्ठात्री देवी स्वभाव से सौम्य हैं | षोडश कलाओं से युक्त होने के कारण इन्हें षोडशी भी कहा जाता है | चिरयौवन तथा कलाओं की प्राप्ति के लिए इनकी उपासना का विधान है | यह देवी का अत्यन्त मनोहारी रूप है तथा इनकी उपासना के लिए मन्त्र है “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुरसुन्दरीयै नमः |”
चतुर्थ महाविद्या हैं भुवनेश्वरी | जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है – तीनों लोकों अधिष्ठात्री तथा पोषण करने वाली | पाँचों तत्व – आकाश, वायु, पृथिवी, अग्नि और जल – इन्हीं से निर्मित हैं | ये साक्षात प्रकृति रूपा हैं तथा इन्हें मूल प्रकृति के नाम से भी जाना जाता है | जब दुर्गम दैत्य के अत्याचारों से त्रस्त होकर भूखे प्यासे देवता व मनुष्य देवी की शरण में गए तो इन्होने शाक मूल फल देकर उनकी क्षुधा को शान्त किया था और इसीलिए इनका नाम शाकम्भरी पड़ा | इनकी उपासना के लिए मन्त्र है “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नमः |”
महाविद्याओं में पाँचवाँ स्थान पर अवस्थित महाविद्या छिन्नमस्ता हैं, इनके इस रूप को समस्त कामनाओं के नाश का प्रतीक माना जाता है | छिन्ना यस्या मस्ता इति छिन्नमस्ता – जिसका मस्तक छिन्न है | इन्होने अपने ही छिन्न मस्तक को अपने हाथों में उठाया हुआ है | ये सत-रज-तम – तीनों गुणों का प्रतिनिधित्व करती हैं | इनके हाथ में इनका छिन्न मस्तक वास्तव में वे छिन्न कामनाएँ ही हैं जो मनुष्य को पथभ्रष्ट करती हैं | इनकी साधना के लिए “श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा” मन्त्र का जाप किया जाता है |
छठी महाविद्या हैं त्रिपुर-भैरवी | देवी का यह रूप अत्यन्त उग्र तथा भयंकर है | वास्तव में भगवान् शिव की विध्वंसक प्रवृत्ति की ही प्रतीक हैं | अर्थात ये संसार से समस्त प्रकार के पापों का विनाश करने के लिए सदा तत्पर रहती हैं | “ॐ ह्रीं भैरवी कलौंह्रीं स्वाहा:” मन्त्र के द्वारा इनकी उपासना की जाती है |
दस महाविद्याओं में सातवें स्थान धूमावती आती हैं | इन्हें दुर्भाग्य, दारिद्रय तथा अ स्वास्थ्य और क्लेश की देवी माना जाता है | ये देवी धुएँ के रूप में हैं तथा दरिद्रों के घरों में विद्यमान रहती हैं और इसीलिए इन्हें अलक्ष्मी भी कहा जाता है | यद्यपि इन्हें लक्ष्मी की बहन माना जाता है किन्तु ये उनसे बिल्कुल विपरीत हैं | इन्हें समस्त प्रकार के जादू टोने आदि से मुक्ति दिलाने वाला भी माना जाता है | इनकी सिद्धि के लिए “ॐ धूँ धूँ धूमावती देव्यै स्वाहा:” मन्त्र का जाप किया जाता है |
अष्टम महाविद्या का नाम है बगलामुखी, जिनका पीत वर्ण से सम्बन्ध माना जाता है और इसीलिए ये पीताम्बरा के नाम से भी प्रसिद्ध हैं | इन्हें स्तम्भन कर्म की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है | इस रूप को समस्त प्रकार की प्राकृतिक आपदा, शत्रु भय अदि हर प्रकार के कष्ट से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है | इनकी सिद्धि के लिए “ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै ह्लीं ॐ नम:” मन्त्र का जाप करने का विधान है |
नवम महाविद्या का नाम है मातंगी, जिन्हें तन्त्र विद्या में पारंगत “तान्त्रिक-सरस्वती” भी कहा जाता है | इन्हें संगीत तथा ललित कलाओं में महारथ प्राप्त है | माना जाता है कि ये मतंग मुनि की पुत्री थीं | अपनी पुत्री की देवी के रूप में मतंग मुनि ने उपासना की थी “मतंगमुनिपूजिता या सा मातंगी” | ऐसी भी मान्यता है कि मतंग मुनि से भी पूर्व भगवान् विष्णु ने इनकी उपासना की थी | बौद्ध धर्म में मातागिरी नाम से इनकी उपासना की जाती है | “ॐ ह्रीं ऐं भगवती मतंगेश्वरी ह्रीं स्वाहा:” मन्त्र के द्वारा इनकी उपासना का विधान है |
दशम महाविद्या हैं कमल के समान दिव्य एवं मनोहर स्वरूप से सम्पन्न, पवित्रता तथा स्वच्छता की प्रतीक भगवान् विष्णु की अर्द्धांगिनी देवी कमला | इनका यह रूप समस्त प्रकार की सुख समृद्धि और सौभाग्य को देने वाला माना जाता है | इनको प्रसन्न करने के लिए “ॐ हसौ: जगत प्रसुत्तयै स्वाहा:” मन्त्र के द्वारा इनकी उपासना की जाती है |
इन सभी महाविद्याओं को दो कुलों में विभाजित किया गया है – काली कुल और श्री कुल | काली कुल में महाकाली, तारा, छिन्नमस्ता तथा भुवनेश्वरी आती हैं तथा ये सभी उग्र स्वभाव की हैं | त्रिपुरसुन्दरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला श्रीकुल की देवियाँ हैं तथा स्वभाव से सौम्य हैं | गृहस्थ लोगों को तान्त्रिक उपासना नहीं करनी चाहिए | क्योंकि तनिक सी भी चूक घातक हो सकती है | किन्तु वे लोग यदि चाहें तो महाविद्याओं के सौम्य रूपों का जाप कर सकते हैं |
दशमहाविद्याएँ सभी की रक्षा करें तथा समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करें…