वसन्त पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
आया वसन्त, आया वसन्त, लो फिर से मदिराया वसन्त |
वसुधा के कोने कोने में छाया वसन्त छाया वसन्त ||
लो फिर से है आया वसन्त, लो फिर से मुस्काया
वसन्त |
हरियाली धरती को मदमस्त बनाता लो आया वसन्त ||
और अंग अंग में मधु की मस्त बहारों सा छाया वसन्त |
आया वसन्त, आया वसन्त, लो फिर से मदिराया वसन्त ||
मुरझाई डाली लहक उठी, फूलों की बगिया महक उठी |
सरसों फूली अम्बुवा फूले, कोयल मधुस्वर में चहक
उठी ||
वन उपवन बाग़ बगीचों में पञ्चम सुर में गाया वसन्त |
आया वसन्त, आया वसन्त, लो फिर से मदिराया वसन्त ||
पपीहा बंसी में सुर
फूँके, और डार डार सरसों फूले |
है सजा प्रणय का राग,
हरेक जड़ चेतन का है मन झूमे ||
लो मस्ती का है रास
रचाता महकाता आया वसन्त |
आया वसन्त, आया वसन्त, लो फिर से मदिराया वसन्त ||
भंवरा गाता गुन गुन
गुन गुन, कलियों से करता अठखेली |
और प्रेम पगे भावों से
मन में उनके हूक उपज उठती ||
फिर मस्ती का है राग
सुनाता लहराता आया वसन्त |
आया वसन्त, आया वसन्त, लो फिर से मदिराया वसन्त ||
धरती ने पाया नव यौवन, उन्मत्त हो उठे चरन
चरन |
छवि देख निराली मधुऋतु की रह गए खुले के खुले नयन |
नयनों की गागर में छवि का सागर भर छलकाया वसन्त ||
आया वसन्त, आया वसन्त, लो फिर से मदिराया वसन्त ||
ऋतु ने नूतन श्रृंगार किया, नैनों में भर अनुराग
दिया |
और कामदेव ने एक बार फिर चढ़ा धनुष पर बाण दिया |
तब पीत पुष्प से सजी धरा संग फिर से बौराया बसन्त ||
आया वसन्त, आया वसन्त, लो फिर से मदिराया वसन्त ||
माँ वाणी की उपासना के साथ ही वासन्ती हवाओं से सबके मनों को
प्रफुल्लित करते हुए ऋतुराज वसन्त के स्वागत हित वसन्त पञ्चमी की सभी को हार्दिक
शुभकामनाएँ...