ईशोपनिषद
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं
हम सब प्रायः अपनी तुलना किसी अन्य से करने लगते हैं | किन्तु कोई भी दो व्यक्ति एक जैसे नहीं हो सकते | कोई भी दो वस्तुएँ एक जैसी नहीं हो सकतीं | किन्हीं भी दो व्यक्तियों के गुण एक जैसे नहीं हो सकते | कोई व्यक्ति किसी एक कार्य में कुशल हो सकता है तो दूसरा किसी अन्य कार्य में कुशल हो सकता है | और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम सभी अपने आप में एक पूर्ण व्यक्तित्व हैं |
ईशावास्योपनिषद् का मन्त्र है “ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते | पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||” यह मन्त्र वास्तव में इसी सत्य की ओर इंगित करता है कि प्रत्येक्क वस्तु और प्रत्येक जीव स्वयं में पूर्ण होता है | “पूर्णमदः पूर्णमिदं” – वह परब्रह्म भी पूर्ण है और यह कार्यब्रह्म भी पूर्ण है | “पूर्णात् पूर्णमुदच्यते” – क्योंकि यह पूर्ण उस पूर्ण आत्मा से ही उत्पन्न हुआ है |
अब प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या दो पूर्ण भी एक साथ रह सकते हैं ? बिल्कुल रह सकते हैं, क्योंकि एक पूर्ण दूसरे पूर्ण का ही तो विस्तार है – केवल उसका स्वरूप भिन्न है | “पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते” – पूर्ण में से पूर्ण को निकाल लेने पर भी वहाँ पूर्ण ही शेष रहता है |
ईशावास्योपनिषद् का यह मन्त्र हमें देश काल की सीमाओं से अनन्त बनाते हुए हमारी पूर्णता से हमारा साक्षात्कार कराता है | इस प्रकार तत्वतः तो सृष्टि की प्रत्येक संरचना अपने आपमें पूर्ण होती है और प्रत्येक घटक किसी महत्त्वपूर्ण और विशिष्ट प्रयोजन के लिए ही निर्मित होता है |
समस्त ब्रह्माण्ड अपने आपमें पूर्ण हैं | ब्रह्माण्डों में व्याप्त समस्त वायु अग्नि जल आदि तत्व, समस्त रूप रस गन्ध आदि अपने आपमें पूर्ण हैं | समस्त काल, समस्त दिशाएँ – कुछ भी अपूर्ण नहीं है – हो ही नहीं सकता – पूर्ण है समस्त विराट् अपने आपमें | इस प्रकार हम सब उस विराट के सूक्ष्म से भी सूक्ष्मतर कण होते हुए भी स्वयं में पूर्ण हैं, क्योंकि पूर्ण का अंश हैं | पूर्णता का बोध वास्तव में अद्वितीय होता है और उसका कोई विकल्प भी नहीं होता | और यदि विकल्प खोज भी लिया जाए तो वह भी निश्चित रूप से पूर्ण ही होगा | हम सभी पूर्ण के भीतर भी हैं और हमारे भीतर ही पूर्ण है | क्योंकि हम सभी पूर्ण हैं – क्योंकि हम सभी एक ही पूर्ण का विविध रूपों में विस्तार हैं – अतः स्वयं में हम सभी महान हैं |
जब हम सभी स्वयं में पूर्ण व्यक्तित्व हैं तो किसी की किसी अन्य से तुलना कैसी ? आज महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर हम सभी संकल्प लें कि अपनी अपनी “पूर्णता को पूर्ण” रखते हुए, अपने अपने स्वभाव और योग्यता के अनुसार कर्म करते हुए, अपने अपने लक्ष्य के प्रति अग्रसर रहें और ईशोपनिषद के इस कथन का निरन्तर स्मरण करते रहें…
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते | पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ||