स्वार्थ और नि:स्वार्थ वास्तव में एक ही सिक्के के दो पहलू हैं | एक ही जीव स्वार्थी भी हो सकता है और स्वार्थहीन भी | किन्तु यदि हम आत्मोन्नति की दिशा में अग्रसर हैं, तो हमारे लिए यह आवश्यक है कि हम अपने स्वार्थ को निस्वार्थता में परिणत कर दें | इच्छाओं और महत्त्वाकांक्षाओं के क्षेत्र का विस्तार आवश्यक है, क्योंकि इन्हें विस्तार दिए बिना जीवन में उन्नति नहीं की जा सकती | किन्तु यदि हम इनके क्षेत्र को विस्तार देने के साथ ही इन्हें नि:स्वार्थ भी बना सकें तो यह हमारी आत्मोन्नति के मार्ग का प्रथम सोपान होगा तथा समस्त चराचर प्रकृति हमारी मित्र बनकर हम पर अपना समस्त स्नेह न्यौछावर करती हुई हमारा मार्गदर्शन करेगी... सभी का आज का दिन मंगलमय हो...