(मेरी अपनी एक सखी के जीवन की सत्य घटना पर आधारित कथा –
अन्त में थोड़े से परिवर्तन के साथ)
वो काटा
“मेम आठ मार्च में दो महीने
से भी कम का समय बचा है,
हमें अपनी रिहर्सल वगैरा शुरू कर देनी चाहिए…” डॉ सुजाता International Women’s
Day के प्रोग्राम की बात कर रही थीं |
‘जी डॉ, आप फ़िक्र मत कीजिए,
आराम से हो जाएगा… आप बस अगले हफ्ते एक मीटिंग बुला लीजिये,
बात करते हैं सबसे…” मोबाइल पर बात करती करती नीना पार्क में धूप सेंकने के लिए आ
बैठी थी |
आज मकर संक्रान्ति थी और
सारे बच्चे पतंग उड़ाने के लिए छतों पर चढ़े हुए थे | डॉ कपूर पार्क ही में बैठी थीं
| नीना को देखते ही सोसायटी की छत की तरफ इशारा करती बोलीं “वो देखो… और तो सब ठीक
है नीना जी, पर ये
स्नेहा इन लड़कों के बीच जाकर पतंग उड़ा रही है, अच्छा लगता है
क्या ? इसके घरवाले भी तो इसे नहीं रोकते… बहुत सर चढ़ा रखा है… देखना एक दिन क्या
गुल खिलाएगी…? पता है न जाने कहाँ कहाँ म्यूज़िक के प्रोग्राम देती फिरती है… हम तो
बगल में रहते हैं इसलिए हमें पता है, कितनी कितनी देर से घर
आती है प्रोग्राम करके… ये कोई ढंग होते हैं अच्छे घर की बहू बेटियों के…?”
“हुम्…” कुछ सोचते हुए नीना
ने पूछा “डॉ कपूर,
International Women’s Day पर कुछ कर रहे हैं आप लोग सोसायटी में…?”
“हाँ हाँ, तैयारियाँ चल रही हैं… देखो भई तम्बोला सब
पसन्द करते हैं तो वो तो रहेगा ही, बाक़ी कुछ लेडीज़ के डांस
वगैरा होंगे… लंच होगा… अब भई हम लेडीज़ के लिए तो ये दिन बड़े गर्व की बात होती
है…” बड़े उत्साह से डॉ कपूर ने जवाब दिया |
“Women’s Day Celebration
की बात इतने गर्व से करती हैं,
और आज अगर कोई बच्ची अपने भाइयों और दोस्तों के साथ पतंग उड़ाने छत पर चली गई तो
उसके विस्तार लेते पंखों से आपको ईर्ष्या हो रही है…?” मन ही मन सोचते हुए नीना ने
आसमान की ओर नज़र उठाई तो ख़ुशी से झूम उठी, रंग बिरंगी – तरह
तरह के डिज़ाइन की पतंगें आसमान में तैर रह थीं | बड़ा अच्छा लग रहा था नीना को ये
देखकर और अपना बचपन याद आ गया था | तभी कहीं से आवाज़ आई “वो काटा…” और नीना भी साथ
में ताली बजाती ख़ुशी में चिल्ला उठी “वो काटा…” किसी की पतंग किसी ने काट दी थी और
नीना के साथ पार्क में बैठी डॉ कपूर भी ये सब देखकर हँस रही थीं |
अचानक उसे महसूस हुआ कि
पार्क में तो कहीं से आवाज़ आई नहीं थी, बच्चे सारे छतों पर चढ़े हुए थे, फिर ये
आवाज़ आई कहाँ से ? और कुछ सोचकर ख़ुशी और प्यार से मुस्कुरा उठी | मिसेज़ कपूर शायद
नीना को बच्चों की तरह उछलते देख हँसी थीं | इसी ख़ुशी के माहौल में न जाने कहाँ जा
पहुँची थी नीना… शायद बहुत पीछे…
“भाई साहब ये कोई भले घर की
लड़कियों के ढंग हैं… बताइये,
शाम के पाँच बजने को आए और हमारी नीना देवी का अभी तक कोई अता पता नहीं… लगी रहती
है उस चारु के साथ पतंगबाज़ी के चक्कर में… देखना एक दिन क्या गुल खिलाएगी वो चारु…”
नीना घर के भीतर घुसने ही वाली थी कि भीतर से चाचा की कड़क आवाज़ कानों में पड़ी और
चप्पल हाथ में लेकर चुपके से घर में घुसने का रास्ता तलाशती एक कोने में खड़ी हो गई
| माँ और चाची ने देख लिया था और प्यार से मुस्कुराते हुए उसे वहीं छिप कर खड़े
रहने का इशारा किया |
“अरे ये क्या बकवास किये जा
रहे हो रामेश्वर…” ये पापा की मीठी सी आवाज़ थी “जिस चारु को आप रात दिन मुँह भर भर
कर कोसते हो पता है वो है किस खानदान की…?”
“जी हाँ मालूम है आप यही
कहेंगे कि शहर के इतने रईस परिवार की लड़की है… वो भी ऐसा परिवार जिसमें हर कोई
बेहद पढ़ा लिखा है | पर क्या फायदा ऐसी पढ़ाई लिखाई का जो बच्चों में अच्छे संस्कार
न डाल सके…” चाचा ने जवाब दिया |
“तो आपके हिसाब से अच्छे
संस्कार यही हैं कि औरतों को,
लड़कियों को दबा कर रखा जाए… जैसा हमारे घर में हुआ है…? ये दोनों – आपकी और मेरी
पत्नियाँ – पोस्ट ग्रेजुएट हैं दोनों ही, पर नहीं जी – लड़की पढ़ी लिखी चाहिए लेकिन
नौकरी नहीं कराएँगे | हमें बहू बेटी की कमाई नहीं खानी है | अरे नौकरी नहीं करानी
है तो इतना पढ़ाने लिखाने की क्या ज़रूरत है भाई, नवीं दसवीं
पास करते ही बिठा लो घर में और घर गृहस्थी के काम सिखाकर कर दो जल्दी से शादी | भले
ही वहाँ दम घुटकर मर जाए | और मुझे तो ताज्जुब है अपने मरहूम पिता बैरिस्टर अमरनाथ
पर, हमारे लिए लड़कियाँ तो पढ़ी लिखी ले आए पर इनके काम छुडवा
दिए | वाह, कितने ऊँचे विचार थे | कभी देखा है आपने इन दोनों
औरतों के चेहरों पर फैली उदासी को ? नहीं आप क्यों देखेंगे ? आप तो बैरिस्टर साहब
के सबसे काबिल पुत्र हैं न…” व्यंग्य से पापा बोले |
“भाई साहब मैं आपसे भाभी जी
की या लक्ष्मी की बात नहीं कर रहा | हाँ नहीं करने दी इन दोनों को नौकरी | पर कभी
कोई कमी छोड़ी क्या ? मुँह से बात निकलने की देर होती है बस, जो कुछ चाहती हैं पल भर में हाज़िर हो जाता
है | पर अब बात नीना की हो रही है | पता है घनश्याम जी क्या बता रहे थे ? बोल रहे
थे नेज़ों के मेले में चारु पतंग उड़ा रही थी और अपनी नीना उसकी चरखी पकड़े खड़ी थी |
पता है शहर में कितनी बदनामी हो रही है कि वो देखो बैरिस्टर साहब के घर की लड़की
क्या नेज़ों के मेले में घूमती फिरती है और पतंग उड़ाती है सो अलग…”
“भई देखो, मैं तो इस सबमें कोई बुराई समझता नहीं |
हमने अपनी बीवियों को तो दबा कर रख लिया पर इन बच्चों को दबाएँगे नहीं | आप प्लीज़
इन बच्चों को करने दीजिये इनके मन की | वैसे भी लड़कियाँ हैं,
कल को शादी हो जाएगी तो न जाने वहाँ कैसा माहौल मिले, यहाँ
तो कम से कम अपने मन की कर लेने दो…” पापा ने जवाब दिया |
“आपसे तो बात ही करना बेकार
है इस बारे में…” चाचा झुँझला कर बोले और अपने कमरे में चले गए | चाची और माँ के
इशारे पर नीना भी चप्पलें हाथ में उठाए बड़ी खामोशी से अपने कमरे में चली गई, ताकि चाचा को पता न चले |
नीना और चारु एक साथ कॉलेज
जाती थीं | नीना एक अच्छी सिंगर और डांसर के रूप में जानी जाती थी और चारु एक
अच्छी पतंगबाज़ के रूप में | दोनों के बीच दोस्ताना ऐसा था कि जब कभी नीना का कहीं
कोई प्रोग्राम होता तो चारु उसके Instruments उठाकर उसके साथ चलने में अपनी शान
समझती थी | उसे अपने आप पर गर्व होता था कि वो एक ऐसी लड़की की सहेली है जिसका आज
काफी नाम हो चुका है उसकी सिंगिंग और डांसिंग के लिए | तो दूसरी तरफ नीना भी चारु
के पतंगबाज़ी के मुक़ाबलों में उसकी चरखी पकड़ने में अपनी शान समझती थी |
नेज़ों का मेला शुरू होने जा
रहा था | ये दिन तो चारू और नीना के लिए बड़े ख़ास होते थे | इस मेले में पतंगबाज़ी
के Competition हुआ करते थे | चारु भी इनमें हिस्सा लेती थी | नीना और चारु को बड़ा
मज़ा आता था ये देखकर कि लड़के चारु की शक्ल देखकर ही घबरा जाते थे | अच्छे अच्छों
की पतंग चारु काट दिया करती थी | लड़के अपने मान्झों और सारी चीज़ों को अच्छी तरह
तैयार करते थे कि इस बार तो चारु को मज़ा चखाएँगे, पर हर राउंड में चारु ही आगे
निकल जाती थी और Prize लेकर घर लौटती थी | नीना घर आकर माँ पापा और चाची को मेले
के सारे किस्से मज़े लेकर सुनाया करती थी |
अब तक दोनों बी ए पास कर चुकी
थीं | नीना ने आगे एम ए में एडमीशन लिया लेकिन चारु नहीं ले सकी थी | पता लगा उसकी
शादी तय हो गई है और इन्हीं गर्मी की छुट्टियों में उसकी शादी होनी है | शहर के एक
बहुत बड़े बिजनेसमैन के इकलौते बेटे के साथ उसकी शादी हो रही थी | नीना ने उससे
पूछा “तू खुश है इतनी जल्दी शादी कराके…?” और चारु ने जवाब दिया “देख भई, अपने राम का तो एक ही सीधा सादा फंडा है, सही वक़्त पर सही काम हो जाना चाहिए…”
“पर तू तो आगे पढना चाहती
थी और बी एड करके नौकरी करना चाहती थी, उसका क्या…?”
“नीना तू भी न पागल है
बिल्कुल… बेवकूफ… तेरी शादी जल्दी नहीं हो सकती… तेरा तो पता है मुझे, अच्छे लड़कों को छोड़ देगी इस केरियर वेरियर
के चक्कर में… अरे पागल जब इतना अच्छा घर बर मिल रहा हो तो मना करे मेरी जूती…” और
खिलखिला कर हँस दी थी | इसी हँसी ख़ुशी में चारु की शादी हो गई थी और शहर में ही एक
घर से निकल कर दूसरे घर में चली गई थी |
नीना को याद है किस तरह
ताना मारा था चाचा ने “देख लिया भाई साहब आपके वो “Intellectual” लोग, अपने से ज्यादा पैसे वाला घर देखा तो टपक
पड़ी मुँह से लार और करा दिए लड़की के हाथ पीले | क्या हम लोग अपनी लड़कियों का ब्याह
इतनी कम उम्र में कर सकते हैं…?”
और पापा ने धीरे से बात आई
गई कर दी थी | बेमतलब की बहसों में उलझना उनका स्वभाव नहीं था | उसके बाद कुछ
ज्यादा मिलना नहीं हुआ था चारु से | चारु जिस घर में गई थी वहाँ का हिसाब किताब
वही था कि सर पर साड़ी का पल्ला रखकर एक ठुक्का साइड में खोंसकर दिन भर घर में इधर
उधर काम निबटाते रहो | सुबह सबसे पहले महाराज के साथ मिलकर घर भर का नाश्ता तैयार
कराओ, फिर दोपहर का लंच तैयार कराओ, उसके बाद शाम की चाय, फिर रात के डिनर की सोचो |
सुबह से लेकर रात तक उनके घर के रसोई के काम ही ख़त्म होने में नहीं आते थे | चारु
की शादी के बाद जब पहले नेज़े आए तो नीना बहुत रोई थी | चारु उस समय प्रेगनेंट थी
इसलिए पतंग उड़ाने नहीं जा सकती थी | वैसे भी उस परिवार की बहुएँ आम लोगों के बीच
नहीं आ जा सकती थीं | प्रतिष्ठा की क़ीमत घर में बन्द रहकर ही चुकाई जा सकती थी |
नीना ने चारु से पूछा भी था एक बार कि ऐसे माहौल में उसका दम नहीं घुटता ? पर चारु
के चहरे पर सन्तोष का भाव देखा तो आगे कुछ नहीं बोल पाई थी |
इस बीच घरवालों से पता लगता
रहा था कि चारु के एक के बाद एक पाँच बच्चे हो गए थे और शरीर बेडौल हो गया था |
नीना पढ़ाई में लगी रही | एम
ए दो दो सब्जेक्ट्स में,
पी एच डी, फिर नौकरी – अपने आपमें ही इतनी खो गई थी कि किसी दूसरे के बारे में
सोचने की फुर्सत ही नहीं थी | उसकी उपलब्धियों पर उसके साथ साथ उसके सारे घरवाले
भी नाज़ करते थे |
और इसी सबके बीच 29 साल की
उम्र में एक दिन पसन्द के लड़के से उसकी शादी भी हो गई | जैसा खुलापन वो चाहती थी
वैसा ही उसे ससुराल में मिला तो वह धन्य हो उठी | आज उसकी अपनी एक पहचान बन चुकी है
| एक तरफ वह शरद की पत्नी के रूप में जानी जाती है तो दूसरी तरफ “डॉ नीना” के
प्रशंसकों की भी कमी नहीं है |
अगले दो तीन दिन उसके
फेसबुक पर गुज़रे | आख़िर एक दिन चारु को उसने ढूँढ़ ही निकाला | उसके सारे बच्चों की
शादियाँ हो चुकी थीं और उनके भी बच्चे बड़े बड़े हो गए थे और उनके भी शादी ब्याह हो
चुके थे | वो तो होने ही थे | कितनी जल्दी तो उसकी शादी हो गई थी | नीना और चारु
दोनों इस समय 66+ की हो चुकी हैं | लेकिन जल्दी शादी और घर की ज़िम्मेदारियाँ उठाते
उठाते चारु जहाँ बूढ़ी दिखने लगी है वहीं नीना में अभी भी कशिश बाक़ी है | हालाँकि
वज़न उसका भी बढ़ गया है उम्र के साथ |
नीना ने चारु को फ्रेंडशिप
रिक्वेस्ट भेजी जो बड़े आश्चर्य के साथ चारु ने एक्सेप्ट भी कर ली और शुरू हो गया
बरसों की बिछड़ी दो सहेलियों का बातों का सिलसिला | चारु के एक बड़े बेटे को छोड़कर
बाक़ी सारे बच्चे बाहर सेटल हो चुके थे | चारु अपने बड़े बेटे के साथ ही रहती थी |
आख़िर दोनों ने मिलने का प्रोग्राम बनाया | नीना ने शरद को साथ चलने के लिए तैयार
किया और दोनों नीना के साथ उसके मायके पहुँच गए | माँ पापा तो रहे नहीं थे सो एक
होटल में रूम बुक कराके शहर में निकल पड़े | पता लगा शहर में काफी कुछ तब्दीलियाँ
हो गई थीं | नई सडकें,
फ्लाई ऑवर बन चुके थे | फ्लैट्स, मल्टीप्लेक्स और मॉल की कल्चर वहाँ भी पहुँच चुकी
थी | चारु की ससुराल का पता हालाँकि फोन पर मिल गया था, फिर
भी घर ढूँढने में कुछ वक़्त लग गया | महर्षि गूगलानंद के पास नया नक्शा अभी नहीं था
तो उन्होंने किसी पुराने रास्ते पर डाल दिया था जो आगे जाकर बन्द हो जाता था | पर
देर से ही सही, पहुँच गए |
चारु को मिली तो सबसे पहले
नेज़ों का ही पूछा | लेकिन चारु अपनी घर गिरस्ती में ऐसी खोई थी कि अब उसे नहीं पता
था कि कहीं कोई नेज़ों के मेले जैसा कुछ होता भी है या नहीं | उसके चेहरे पर लगातार
एक उदासी बिखरी हुई थी |
बहुत दुःख हुआ चारु का हाल
देखकर नीना को और उसने उसे अपने घर दिल्ली आने की दावत दी | शरद के स्वभाव के कारण
चारु के पति की भी उनसे दोस्ती हो गई थी और एक दिन वे दोनों प्रोग्राम बनाकर
दिल्ली पहुँच गए |
दोनों की वापस से दोस्ती हो
गई थी | और इस दोस्ती ने जो नया गुल खिलाया वो था – इस साल के नेज़ों के मेले में किसी
बड़ी कम्पनी के ट्रेक सूट और स्पोर्ट्स शूज़ पहने दोनों 66 साल की सफ़ेद बालों वाली
सहेलियाँ पतंग उड़ा रही थीं… चारु पतंग उड़ा रही थी… नीना उसकी चरखी पकड़े खड़ी थी…
दोनों के परिवार भी दर्शक समूह में शामिल थे और इन दोनों को ये सब करते देख खुश हो
रहे थे…
तभी चारु ख़ुशी में चिल्लाई
“वो काटा…”