सच्ची दोस्ती को परिभाषित करता डॉ दिनेश शर्मा का
एक खूबसूरत लेख...
ये दोस्ती...
डॉ दिनेश शर्मा
जीवन में जान पहचान तो बहुत लोगों से होती है, लोग मिलते रहते है -बिछड़ते रहते है पर लंबी और सच्ची मित्रता कुछ ही लोगों
से होती है । यदि किसी के जीवन में शुद्ध प्रेम पर आधारित निस्वार्थ मित्रता है तो
वह व्यक्ति सच में भाग्यशाली है । यदि मित्रता या जान पहचान का आधार स्वार्थ है या
'बन्दा बडा काम का है-पटा कर रक्खो वाला भाव है' तो मित्रता का आधार ही गलत बुनियाद पर है । ऐसे सम्बन्ध 'फेयर वेदर' यानि खुशनुमा मौसम वाले होते है । मौसम बिगड़ते ही मतलब आप से काम निकलते
ही या आप पर कुछ संकट आते ही ये धुएं की तरह उड़ जाते हैं ।
यद्यपि शास्त्रों में ऐसा उल्लेख है कि हितैषियों
की परीक्षा आपत्ति के समय होती है पर मैं इससे इसलिए सहमत नहीं हूँ क्योंकि ऐसा
भाव मन में कहीं न कहीं अपेक्षाएं या उम्मीदें पैदा करता है और व्यक्ति को कमज़ोर
बनाता है । हम लोग सामाजिक प्राणी है और समाज में रहते हुए ऐसी उम्मीदें चाहे
अनचाहे पैदा हो ही जाती हैँ ।
कई बार हमारे जीवन से कुछ खास दोस्त बिना किसी
वजह के गायब हो जाते हैं ऐसे ही जैसे हम खुद भी बिना किसी वजह के कुछ लोगों से
निर्लिप्त हो जाते है । इसके भी दो कारण हो सकते है । क्या तो हमारा खुद का बौद्धिक
विकास इतना हो जाता है कि हमें कुछ लोगों से बातें करने में कोई नयापन या
स्टिमुलेशन नहीं मिलता । या फिर कुछ लोग हमसे भी अधिक ग्रो कर जाते है और उन्हें
हमसे मिलने में कुछ खास खुशी नहीं मिलती । कई बार अत्यंत भावुकता या ओवर
सेंसिटिविटी भी वजह बन जाती है । किसी की हमें या किसी को हमारी कोई छोटी सी बात
भी इतनी तकलीफ दे जाती है कि मन फिर जुड़ाये नहीं जुड़ता ।
इसलिए ही तो कहता हूँ यदि आपके जीवन में शुद्ध
प्रेम पर आधारित निस्वार्थ मित्रता है तो आप ही सच में बहुत भाग्यशाली है ।
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