Meaning of खड़ा in English
Articles Related to ‘खड़ा’
- घायल सिपाही
- इस मिट्टी पर ही हमे अपना स्वर्ग खड़ा करना है
- इतनी ज्यादा भी मेहरबानी ना कर
- जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
- ऐ मेरे दिल की दीवारों
- Kinara
- पूरा देश है चेन्नई के साथ
- जिंदगी ऐसी क्यों है
- हमसफर ❤❤
- यही है अपना प्यारा डिजिटल इंडिया
- एक अनजान सफ़र
- एक और जवान का वीडियो, जिसकी बातें सुनकर आपका दिमाग सुन्न हो जाएगा
- मोदी के खर्चे ! सीधा RTI से पता किया और पीएमओ से क्या जवाब आये !!
- एक संस्मरण
- आशाओं के पंख
- क्या यही प्यार है?-2(भाग:-10)
- नैना का भाग जाना,,,,
- ''हे प्रभु अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजो .''
- नास्तिक प्रोफेसर और विद्यार्थी के मध्य संवाद :
- कबूतर
- फिर पांव पलट कर वहीँ आ गए
- उदयनिधि स्टालिन
- जिन खोजा तिन पाइयां
- ''ना सही धूप''
- और तुम कितना तराशोगे मुझे
- मैं दुखी हूँ ..
- दलबदल कानून के औचित्य पर सवाल
- नूतन वर्षाभिनंदन
- "मुक्तक"
- तुम अगर छू लो बड़ा हो जाऊंगा
- गीत ----- मत कर यहाँ सिंगार ,
- जोश भी है जूनून भी
- मेरी रचना ।....सुनील कुमार
- जल संकट पर राजनीति और बॉलीवुड! Water, drought, Politics and Bollywood, Hindi आर्टिकल
- ''आपने जब भी मेरा पोषण किया है ''
- आशाओं के पंख
- मैं तेरे सामने खड़ा हूँ ...
- आनंद, एक मर्मान्तक लेख ज़रूर पढ़े .
- न ये संयोग हैं, न अपवाद
- उम्मीद
- वहाँ बुद्धिमानी किस काम की जहाँ मूर्खता से काम चलता है
- बेटियां शीतल हवा होती है।। इन्हें बचा कर रखे
- काश
- मेरा धर्म
- जिंदगी की सीख
- चाह
- ‘‘सर्जिकल स्ट्राइक’’ से क्या ‘‘समस्या’’ ‘‘हल’’ हो जायेगी?
- विवादित राजनीति का स्थापित नाम
- अप्रैल -फूल
- फार्म हाउस वापस आना,,,
- राष्ट्रगान और राष्ट्रवादिता
- है मन तुम्हारे प्रेम में
- ब्लाइंड (भाग- 5)
- भस्मासुर गा रहा है
- मलाल
- आशाओं के पंख
- समझ से परे
- स्वच्छ भारत
- नमन करूँ मैं
- तीर तरकश में रखो बरछी म्यान में
- वो सिपाही (लघुकथा)
- साहिल
- भारत माँ के रण-बाँकुरे
- मैं क्या करूँ जब मुझे कोई सुनसान राह में छेड़ने की कोशिश करे
- कोच पद के लिए रवि शास्त्री का अनुचित प्रलाप! Ravi Shastri Sourav Ganguly, controversy, Hindi Article, BCCI, Mithilesh
- "ज्यादा ही तो , जहर है "
- इंसानियत का झंडा कब से यहाँ खड़ा है ...
- “कुंडलिया” पढ़ना- लिखना, बोलना, विनय सिखाते आप।
- शिक्षामित्रों के लिए बुरी खबर
- हे आकाश
- जीवन की आपाधापी में कब वक्त मिला
- ओ घोड़ी पर बैठे दूल्हे क्या हँसता है! ( हास्य कविता )
- मुक्त काव्य
- ओशो गीता दर्शन
- तीन मुक्तक
- भाग-1
- विश्व मजदुर दिवस ---
- मगर तकसीम हिंदुस्तान होगा ...
- बच्चों के गुल्लक से अपना खर्च चलाने को मजबूर रवीना टंडन
- मंज़िल
- फ़कीर
- इश्क़बाज़
- ऐ जिंदगी तुझे कैसे बताऊ जरा?
- गीत का जन्म
- मेरा गाँव
- एक निवेदन गणतंत्र दिवस पर
- ये यादें
- रामू काका
- देहरी
- यक्ष प्रश्न
- वर्तमान में पर्यटन व रोजगार!
- यही है अपना प्यारा डिजिटल इंडिया
- किसान के चेहरे पर मुस्कान
- गंगा के बारे में भ्रमित है भारत सरकार भी
- एक हैसियत
- तो ये हैं 'ईमानदारी के स्पेशलिस्ट' !!
- कोरोना
- चौथा खम्भा : सोशल मीडिया पर छाने के लिए नेताओं को चाहिए पत्रकारों की फ़ौज
- खुलासा: आनंदी बेन को विश्राम देकर अमित शाह को सौंपी जा सकती है गुजरात की कमान!
- छटपटाती रहीं और सिमटती रहीं कोशिशें बाहुबल में सिसकती रहीं। जुल्म जिस पर हुआ,कठघरे में खड़ा। करने वाले की किस्मत चमकती रही। दिल धड़कता रहा दलीलों के दर्मिया। जुल्मी चेहरे पे बेशर्मी झलकती रही। तन के घाव तो कुछ दिन में भर गये। आत्मा हो के छलनी भटकती रही। कली से फूल बनने के सपने लिए। बागवां में खिलती महकती रही। कुचल दी गई किसी के क़दमों तले। अपाहिज जिंदगी ताउम्र खलती रही। न्याय की आस भी बोझिल,बेदम हुई। सहानुभूति दिखावे की मिलती रही। सूरत बदली नहीं बेबसी,बदहाली की। ताजपोशी तो अक्सर बदलती रही। उपाधियों से तो कितने नवाजे गये। सत्य की अर्थी फिर भी उठती रही। ऐसी दुनिया न मिले की मलाल रहे। जहाँ जिंदगी मोम सी पिघलती रही। वैभव"विशेष"
अक्षरों पर क्लिक करके अन्य शब्द देखें